Book Title: Nibandh Nichay
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 328
________________ निबन्ध-निचय । ३११ संवत् लिखा जाता था । इससे भी निश्चित होता है कि जिनसेन का ७०५ वर्ष परिमित शक संवत् वास्तव में कलचुरी संवत् है । उपर्युक्त मान्यता के अनुसार पुन्नाटसंघीय प्राचार्य जिनसेन का सत्तासमय विक्रम की ११वीं शती तक पहुँचता है जो ठीक ही है । क्योंकि हरिवंश पुराण में ऐसी अनेक बातों के उल्लेख मिलते हैं, जो जिनसेन को विक्रम की ११वीं शती के पहले के मानने में बाधक होते हैं । इस प्रकार के कतिपय उल्लेख उपस्थित करके पाठकगरण को दिखायेंगे कि आचार्य जिनसेन की ये उक्तियाँ उन्हें अर्वाचीन प्रमाणित करती हैं । पुराण के नवम सर्ग में निम्नलिखित समस्यापूर्ति उपलब्ध होती है, जैसे— " दृष्टं तैमिरिकं कैश्चिदन्धकारेऽपि तादृशे । स्पर्धमेव हि चन्द्राक्षैः शतचन्द्रं नभस्तलम् ॥ १०६॥" इस श्लोक का " शतचन्द्रं नभस्तलम् ” यह समस्या- पद विक्रमीय १२वीं, १३वीं शती के पूर्ववर्ती किसी साहित्यिक ग्रन्थ में दृष्टिगोचर नहीं हुआ । इससे जाना जाता है कि उक्त समस्या-पद विक्रम की ११वीं शती के पहले का नहीं है | पुराण के १४वें सर्ग के २०वें श्लोक में "हिन्दोल ग्रामरागेण, रक्तकण्ठा धरश्रियः । दोलाद्यान्दोलनक्रीडा; व्यासक्ताः कोमलं जगुः ||२०|| " इस प्रकार हिन्डोल राग दोलान्दोलन क्रीड़ा आदि शब्द अर्वाचीनतासूचक हैं | प्राचीन साहित्य में सप्तस्वरों का विवरण अवश्य मिलता है, परन्तु हिन्दोल राग, दोलान्दोलन क्रीड़ा आदि शब्द हमने १२वीं शती के पहले के किसी भी साहित्यिक अथवा संगीत के ग्रन्थों में नहीं देखे । हरिवंश के ४०वें सर्ग के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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