Book Title: Navtattva Vistararth
Author(s): Jain Granth Prakashak Sabha
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 13
________________ (<) यो छे, जो के-- आ लघु प्रकरण उपर प्रस्तावनानी आवश्यकता न ज होय तो पण अमारा उपर अनुग्रह करी ' पंचकल्याणकपूजादिसंग्रह' विगेरेना मणेता मुनि महाराजश्री पद्मविजयजी महाराजे ' किंचित्मास्ताविक ' तथा तदन्तर्गत घणोज उपयोगी अनेक ग्रंथोना सार रूप सम्यक्तरविचार लखी आप्यो छे, आवाज स्वतंत्र नवतोनो बोध आपनारा जयशेखरसूरिकृत नवतरव, दे वगुप्तमूरिकृत नवत ते उपर अभयदेवसूरिकृत नवतभाष्य देवानन्दसूरिकृत समयसारप्रकरण विगेरे अनेक प्रकरणोठे, तथाि ते सर्व करतां आ प्रकरण घणुं प्रसिद्धि पामेलं अने अध्ययन अध्यापनमां तेनो बहोलो प्रचार थयेलो होवाथी आनेज प्रसिद्ध करवामां आछे, वीजा प्रकरणो पैंकी तथा ग्रन्थान्तर्वचिनवत विचारी पैकी केला अमोर नवतस्वसाहित्य से नापना पुस्तकां गुर्जरानुवाद साथै प्रसिद्ध कर्या छे. नवतचना प्रणे तानी गवेषणा करता हजु सुधी कांह निर्णय थह शक्यो नवी नवतश्व टबावाळी एकन प्राचीन प्रतिमां साठमी एक गाथा " इय नवतत्तवियारो । अप्पमइनाणजाणणाहेउं ॥ संखित्तो उद्धरिओ | लिहिओ सिरिधम्मसूरीहिं ॥ १ ॥ "" देखarni आवाथ श्रीधर्मसूरि महाराज आ प्रकरणना कर्त्ता होय तेम जगाय छे, धर्मभूरिजी महाराजनो समय निर्णय करवो अशक्य है ? वृत्ति अवचूर्णि बालावबोधकारो आ गाया जणावता नथी जेथी जणाय के जे मूळ सतावीश गाथाओ अन्यकर्तृक होवी जोइये अने तेना प्रणेता तेरमा सैकानी पूर्वे थयेला होवा जोइए तेम तेनी वृत्तिओ उपरथी अनुमान थाय छे, वळी बीजा एक प्राचीन पुस्तकमां " इति श्री वादिदेवसूरिविरचितं नवप्रकरणम् " ए प्रमाणे वाक्य जोवामां आव्युं हतु जे उ

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