Book Title: Navtattva Vistararth
Author(s): Jain Granth Prakashak Sabha
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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(७) मार्गने दर्शावनार अठावीशमा मोक्षमार्गगति अध्ययनमां पण आज तत्वोनो उद्देश छे-जूझो गाथा १४-१५'जीवाजीवा य बन्धो य पुण्ण पावासवो तहा । संवरो निजरा मोख्खो,सन्ते ए तहिया नव ॥१॥ तहियाणं तु भावाणं, सम्भावे उवएसणं । भावेणं सद्दहंतस्स सम्मत्तं तं वियाहियं ॥२॥" तेमज अनूनापूर्वदशपूर्वधर भगवान् श्रीउमास्वातिवाचकनिर्मित तत्त्वार्थसूत्रप्रासाद पण आज सच्चोना पाया उपर रचायेल छे. 'तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् ' ' जीवाजीवाश्रवबन्धसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्वम् ' उपरना वचनोमां पुण्यतत्व पापतस्वनो बन्ध. तत्वमा अन्तर्भाव करेल होवाथी नवसंख्यामां · विरोध नथी, प्रशमरति, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रान्तर्गत तीर्थंकरोपदेश, योगशास्त्रवृत्ति धर्मरत्नप्रकरणवृत्ति, समयसारप्रकरण इत्यादि अनेक ग्रन्थोमां आ तत्वोने उद्देशी वर्णन करवामां आव्युं छे,
तत्वोनो स्वतन्त्र बोध लेवा माटे आ नवतत्त्वप्रकरण अति प्रसिद्ध छे. जो के आ प्रकरण उपर संस्कृतमां अवचूर्णि टीका-विवरण विचारसारोद्धार विगेरे, भाषामां टवा बालावबोध विगेरे अने एनाज अनुवाद तरीके भाषामां पद्यबन्ध विविधस्तवनो रासो चोपाइओ-जोड छन्दोबद्ध अनुवाद गद्यबन्धविचार विगेरे घणुंज लखायुं छे, छतां पण कालानुभावथी बहोळे भागे संस्कृतभाषानु अज्ञान, प्राचीनशैलीनो अनव बोध इत्यादि कारणने उद्देशी संस्कृतछाया--शब्दार्थ अर्थ विगेरेनी खास अ त्यता हती ते केटलेक अंशे आ पुस्तकथी पूरी. पडशे एम धारी आ पुस्तक प्रसिद्ध करवामां आव्यु छे. संस्कृत छाया-- शब्दार्थ-- विस्तरार्थ, मास्तर चंदुलाल नानचन्द पासे लखा१ पुण्यपापयोश्च बन्धेऽन्तर्भाधान्न भेदेनोपादानम्,
( तत्वार्थवृत्तिः)
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