Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री नरविक्रमचरित्रे | ॥ ३ ॥ www.kobatirth.org य बाहिरुजाणे समोसढा भयवंतो भीमभवजलहितरणतरंडा विसुद्धसन्नाणाइगुणरयणकरंडा मोहमहामल्लपल्लगपयंडा कुमयतमोमुसुमूरणचंडमायंडा मिच्छतंध जग अवलंबणेकदंडा पडिवोहियभवियकमलखंडा सुगहियनामधेया पोड्डिलाभिहाणा थेरा, ओ सो राया विष्णायतदागमणो वियसियवयणो समुल्लसियकवोलो वियंभियसवंगरोमंचकंचुओ समागओ बंदणत्थं । तओ तिपयाहिणीकाऊण पढमदंसणुच्छ लिय हरिसप मरिसविष्कारियाणं धवलदिट्टिवायाणं छलेण विलसियस भमरमियकुमेहिं पूया - पारंपि सवंगयं गुरुणो करेमाणो पयलंतनयणानंदजलेण पक्खालेउमुबडिओव चरणे चरणेकरसियमाणसो माणसोयरहिओ हिओ एसोवलंभकामो कामोवघायसूरस्स सूरिणो निवडिऊण चलणेसु परमपमोयमुवहंतो मणिउमादत्तो रहरिसुराणंपि अज मन्नामि अप्पयं अहियं । जं तुम्ह पायपउमं दुल्लहलंभ मए पत्तं ॥ १ ॥ बहिरुद्याने समवसृता भगवन्तो भीमभवजलधितरणतरण्डा विशुद्धसंज्ञानादिगुणरत्नकरण्डा मोहमहामहपीडनप्रचण्डाः कुमततमोनाशनचण्ड मार्तण्डा मिथ्यात्वान्धजगदवलम्बनै कदण्डाः प्रतिबोधित भव्य कमलखण्डाः सुगृहीतनामधेयाः पोट्टिलाभिधानाः स्थविरा: । ततः स राजा विज्ञाततदागमनो विकसितवदनः समुल्लसितकपोलो विजृम्भितसर्वाङ्गरोमा कञ्चुकः समागतो वन्दनार्थम् । ततस्त्रिः प्रदक्षिणीकृत्य प्रथमदर्शनोच्छलितहर्ष प्रकर्षविस्फारितानां धवलदृष्टिपातानां छलेन विलसितसभ्रमरसितकुसुमैः पूजाप्राग्भार मित्र सर्वाङ्गिकं गुरोः कुर्वाणः प्रगलन्नयनानन्दजलेन प्रक्षालयितुमुपस्थित इव चरणे चरणैकरसिक मानलो मानशोकरहितो हितोपदेशोपलम्भकामः कामोपघातशूरस्य सूरेर्निपत्य चरणयोः परमप्रमोदमुद्वहन् मणितुमारब्धः - बहिर हरिसुरेभ्योऽपि, अद्य मन्ये आत्मानमधिकम् । यत्तव पादपद्मं दुर्लभलम्भं मया प्राप्तम् ।। १ ।। For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पोडिलाचार्यस्य आगमनम् ॥ ॥ ३ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 150