Book Title: Nar Vikram Charitram
Author(s): Shubhankarvijay
Publisher: Ajitkumar Nandlal Zaveri
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श्री
नरविक्रमचरित्रे |
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उवाओ ? के वा एरिसको सहाया ? को य मे पुरिसयारो ? का वा पुढकम्मपरिणइत्ति खणं किंकायवयमूढयं अणुभविय तलं चेव अंगीकयसत्तभावो एवं सम्मं परिभाविडं पवत्तो
परलोयपत्रत्ताणं जइत्रि सुहिं न छोड़ साहारो । जं सर्वसय उवरिं गओवि नगओ दुहं कुणइ ।। १ ।।
तहवि य पुवनराहिवसंतइवुच्छेयदुक्ख मक्खित्रइ । मज्झ मणो पुनरिंदरक्खिओ कुरुजणवओ य || २ || ( जुम्मं ) एत्यंतरे जायाई समुड्डियभारुंड कारंडव हंस चक्का यकुलकोलाहलाउलियाई दिसमुहाई वियलंतपभापसरो विच्छाईभूओ तारयानिय पसरिया सिंदुररेणुपुंजपिंजरा सूरसारहिपमा ताडियाई पडहमुरवझलरिभंगा मेरी मं कारभासुराई पभाय मंगलतूराई समुग्गओ कमलसंडपयंडजड्डविच्छड्डखंडणुड्डामर करपसरो दिणयरो, तओ उडिऊण सयणिजाओ निस्सरिओ वासभवणाओ उपाय: ? के बेदृशे कार्ये सहायाः ? कश्च मे पुरुषकारः ? का वा पूर्वकर्मपरिणतिरिति क्षणं किंकर्तव्यतामूढतामनुभूय तद्वेलामेवाङ्गीकृतसस्वभाव एवं सम्यक् परिभावयितुं प्रवृत्तः -
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॥ २ ॥ युग्मम् ॥
परलोकप्रवृत्तानां यद्यपि सुतैर्न भवति सहकारः । यत्सवशत उपरि गतोऽपि न गतो दुःखं करोति तथापि च पूर्वनराधिपसन्ततिव्युच्छेद दुःखमा क्षिपति । मम मनः पूर्वनरेन्द्ररक्षितः कुरुजनपदश्च अत्रान्तरे जातानि समुड्डीयमानभारुण्डकारण्डव हंसचक्रवाक कुल कोलाहलाकुलानि दिशामुखानि विगलत्प्रभाप्रसरो विच्छायीभूतस्तारकानिकरः, प्रसृता सिन्दूर रेणुपुञ्जपिञ्जरा सूर्य सारथिप्रभा, ताडितानि पटहमुरजझल्लरिभम्भाभेरीभाङ्कारभासुराणि प्रभातमङ्गलतूर्याणि, समुद्रतः कमलखण्डप्रचण्ड जाड्य त्रिच्छई खण्डनोडामरकरप्रसरो दिनकरः, तत उत्थाय शयनीयान्निस्सृतो वास भवनात्
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नरसिंहस्य
सुत
चिन्ता ||
॥ १० ॥

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