Book Title: Nalvilasnatakam
Author(s): Ramchandrasuri, Vijayendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 3
________________ प्रकाशिका-श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला लाखाबावल-शांतिपुरी (सौराष्ट्र) ज वीर सं० २५१० वि० सं० २०४० सन् १९८४ प्रथमावृत्ति प्रतयः ७५० आभार एवं मार्गदर्शन प्राचीन ग्रन्थ प्रकाशन योजनामां कलिकालसर्वज्ञ पूज्य आचार्यदेव श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजाना पट्टधर कविकटारमल्ल पूज्याचार्यदेव श्री रामचन्दसूरीश्वरजी म. विरचित आ श्री 'नलविलासनाटकम्' प्रगट करीए छीए. आ ग्रन्थ प्रगट करवा माटे हालारदेशोद्धारक पू. आ. श्री विजयामृतसूरीश्वरजी महाराजना पट्टधर पू. आ. श्री विजयजिनेन्द्रसूरीश्वरजी म. ना सदुपदेश थी वढवाणशहेर निवासी शाह लाडकचन्द जीवराजभाई तथा राजकोट निवासी वसा सौभाग्यचन्द तलकचन्दभाईनो सहकार मल्यो छे. अने तेमना तरफ थी आ ग्रन्थ प्रगट करतां आनन्द अनुभवीए छीए. तेमज तेमनो आभार मानी प्राचीन साहित्य प्रकाशन माटे मलेल तेमना सहकारनी अनुमोदना करीए छोए. ता०९-६-८४ शाक मारकेट सामे, जामनगर (सौराष्ट्र) लि०मगनलाल चत्रभुज महेता मुद्रक : गौतम आर्ट प्रिन्टर्स, नेहरू गेट बाहर, ब्यावर (राज.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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