Book Title: Naishadhiya Charitam
Author(s): Sheshraj Sharma
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

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Page 9
________________ नैषधीयचरितं महाकाव्यम् छोड़ कर अन्य सर्गोमें श्लोकोंकी संख्या शताऽधिक है। किं बहुना 17 वाँ सर्ग 222 श्लोकोंका है। इसमें समष्टि श्लोकसंख्था 2828 है / कहा जाता है कि अपने आश्रयदाता महाराज जयचन्द्रकी आज्ञासे महाकविने इस महाकव्यको रचा था इसमें उन्नीस छन्दोंका प्रयोग किया गया है जिनमें सबसे अधिक उपजाति छन्द हैं, जिसमें 7 सर्ग लिखे गये हैं / वंशस्थमें 4 सर्ग हैं। इनके अतिरिक्त दोघक, वसन्ततिलका, स्वागता, द्रुतविलम्बित, रथोद्धता, शार्दूलविक्रीडित, स्रग्धरा, शिखरिणी और अनुष्टप आदि छन्द हैं / 17 वा सर्ग - तो अनुष्टुप् छन्दोंमें ही रचित है। इस महाकाव्यपर 23 टीकाएँ रची गई हैं ऐसा प्रतीत हुआ है। जिनमें प्राचीनमें मल्लिनाथकी जीवातु और नारायण पण्डितकी प्रकाश टीका तथा नवीनमें जीवानन्द विद्यासागर और म० म० हरिदास सिद्धान्तवागीशकी टीकाएँ उपलब्ध हैं, टीकाएँ केवल नाममात्रसे प्रसिद्ध हैं। श्रीहर्षके ग्रन्थोंमें नैषधीयचरित और खण्डनखण्डखाद्य उपलब्ध हैं अन्य अप्राप्य हैं। नैषधीयचरितका उपजीव्य है महाभारतके वनपर्वस्थित नलोपाख्यान / इसमें आरम्भ में नलके अनुपम गुणगणोंका सविस्तर वर्णन है। दमयन्तीके पूर्वाऽनुरागकी भी विशद चर्चा है / अनन्तर नलकी दमयन्तीमें आसक्ति, दमयन्तीके विरहसे अधीर होकर राजा वनविहारके लिए जाते हैं, वहाँ तालाबके पास एक हंसको पकड़ते हैं। मनुष्यकी वाणीमें उसका विलाप सुनकर उसको छोड़ देते हैं। वह फिर आकर उनसे दमयन्तीका वर्णन करता है, और दमयन्तीके साथ राजाका सम्बन्ध करानेका प्रण कर दमयन्तीके पास जाता है। हंस दमयन्तीसे राजा नलके सौन्दर्य और गुणोंका वर्णन करता है राजा भीम दमयन्तीके स्वयम्वरका प्रयोग करते हैं नारदके मुख से स्वयम्वरका समाचार सुनकर इन्द्र, यम, वरुण और अग्निके साथ दमयन्तीके स्वयम्वरमें जाने के लिए प्रस्तुत होते हैं। रास्ते में नलको देख कर अपने कौशलसे उन्हें अपना दूत बनाते हैं / बड़े समारोहसे स्वयंवर होता है: चारों देवता नलका रूप लेकर उपस्थित होते हैं / नलका निश्चय करने में असमर्थ होकर दमयन्ती व्याकुल होती है। अन्तमें देवगण उनकी पति-भक्तिसे प्रसन्न होकर अपने चिह्नोंको प्रकट करते हैं तब दमयन्तीके साथ नलका विवाह होता है / लौटते समय कलिके साथ देवताओंका सामना होता है / कलिके नास्तिकवाद प्रकाशित करनेपर देवगण उसका खण्डन करते हैं / कलि नलके ऊपर कुपित होकर उनको पीडित करने का प्रण करके द्वापरके साथ अन्यत्र कहीं उपयुक्त स्थान न देख कर के

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