Book Title: Naishadhiya Charitam
Author(s): Sheshraj Sharma
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

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Page 15
________________ नैषधीयचरितं महाकाव्यम् सविस्तर वर्णन करना / हंसका नलके प्रति दमयन्तीका अनुराग उत्पन्न करनेका प्रयत्न करना और "मैंने आपको परिश्रान्त कर अपराध किया है। अतः आपका कौन-सा ईप्सित कर्म करूं ?" कहना / दमयन्तीका उत्तरके तौरपर आरम्भमें आकारगोपन करना और श्लेषसे द्वयर्थक पदोंका प्रयोग करना, तब नलके प्रति दमयन्तीका सन्देश देनेके लिए हंसकी असमर्थता प्रकट करनेपर दमयन्तीका व्यक्त रूपसे नलमें अपने अनुरागको प्रकाश करना तथा नलको अपने प्रतिसन्देश देनेके लिए उपयुक्त अवसरका प्रतिपादन करना। हंसका भी नलकी विरहाऽवस्थाका वर्णन करना और दमयन्तीका नलके साथ सम्बन्ध में औचित्य का प्रतिपादन करना इसी समय ढूँढती हुई सखियोंका उस स्थानपर आना और रुखसत होकर हंसका विरहसे व्याकुल और अशोक वृक्षके नीचे शय्यामें लेटे हए राजाके पास आकर कार्य की सफलताकी सूचना करना। चतुर्थ सर्ग दमयन्तीकी विरहाऽवस्थाका करुण वर्णन / सखियोंके सामने उपालम्भपूर्वक दमयन्तीका चन्द्रकी निन्दा और राहु की स्तुति करना। पीछे उनको सविस्तर कामदेवकी निन्दा करना। दमयन्तीका कामबाणसे विद्ध होकर ज्यादा बोलनेमें असमर्थ होना, सखियोंके साथ उक्तिप्रत्युक्तिमें तत्पर होना जैसे कि पूर्वाद्ध में सखियोंका दमयन्तीको प्रबोध करना उत्तरार्द्ध में दमयन्तीका उत्तर देना / इसी प्रसङ्गमें नैराश्यके कारण दमयन्तीका बेहोश होना, उनको होशमें लानेके लिए सखियोंका अनेक उपचार करना / दमयन्तीकी चेतनाका वर्णन, कोलाहल सुनकर राजा भीमका प्रधान मन्त्री और प्रधान वैद्यके साथ कन्याके अन्तःपुरमें आना तथा प्रधानमन्त्री और प्रधान वैद्य का एक ही पद्य में भिन्नभिन्न अर्थ में दमयन्तीके उपयुक्त उपचारका प्रतिपादन करना और राजा स्वयंवर कगनेकी गुचना कर दमयन्तीको आश्वासन देना / पञ्चम सर्ग गजा भीमका दमयन्तीके स्वयंवरमें उपस्थितिके लिए अनेक राजाओंको निमन्त्रण देना उसी अवसरमें पर्वत मुनिके साथ देवर्षि नारदका आकाशमार्गसे इन्द्र के समीप जानेका वर्णन अतिथ्य कर इन्द्रका "राजाओंका धर्मयुद्ध में प्राणपरित्याग न करनेका" कारण पूछना / नारदका स्वयंवरमें दमयन्तीको प्राप्त करनेके लिए राजाओंकी युद्ध में अप्रवृत्तिका वर्णन करना और युद्ध देखनेके लिए

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