________________ नैषधीयचरितं महाकाव्यम् =इन्द्रादिदिक्पालमात्रोद्भवः, दिशां= प्राच्यादिकाष्ठानाम्, ईशिता = ईश्वरः, स: = नल:, शास्त्राणि = वेदादिशास्त्राणि (एव), कामप्रसभावरोधिनी इच्छायाः कामदेवस्य वा बलाऽवरोधकारिणी, निजत्रिनेत्राऽवतरत्वबोधिकां=स्वत्रिनयनाविर्भावज्ञापिकां, स्वमहादेवाऽवतारत्वज्ञापिकां वा, द्वयाऽधिका - द्वितयाऽतिरिक्तां, तृतीयामिति भावः, दृशं - नेत्रं, बभार - धृतवान् // 6 // ____ अनुवावा-इन्द्र आदि दिक्पालोंके अंशसे उत्पन्न अतएव दिशाओंके स्वामी नलने स्वेच्छाचारिताको वा कामदेवको बलसे निवारण करनेवाली, अपने तीन नेत्रोंके आविर्भावका वा महादेवके अवतारत्वका बोधन करनेवाली दो से अधिक शास्त्ररूप दृष्टिको धारण किया // 6 // टिप्पणी-दिगीशवृन्दांशविभूतिः = दिशाम् ईशाः (10 त०), तेषां वृन्द, (ष० त०), "स्त्रियां तु सहतिवृन्दं निकुरम्ब कदम्बकम् / " इत्यमरः / दिगीशवृन्दस्य अंशा ( ष० त०), तः विभूति: ( उद्भवः) यस्य सः ( व्यधिकरणबहु० ) / लोकपालकोंके अंशोंसे राजाकी उत्पत्ति होती है, इस बातको भगवान् मनुने भी कहा है इन्द्रानिलयमाऽर्काणामग्नेश्च वरुणस्य च / चन्द्रवित्तेशयोश्चव मात्रा निहत्य शाश्वतीः / / मनु० 7-4 / दिशाम् = "ईशिता" इस पदके योगमें "कर्तृकर्मणोः कृति" इस सूत्रसे कर्ममें षष्ठी / ईशिता ईष्ट इति, "ईशऐश्वर्ये" धातुसे "ण्वुल्तृ वौ" इस सूत्रसे तृप्रत्यय। नलको "दिशाम् ईशिता" कहने से आठ दिक्पाल इन्द्र आदि एक-एक दिशाके स्वामी हैं, पर नल सब दिशाओंके स्वामी हैं / अतः व्यतिरेक अलंकार व्यङ्गय होता है / शास्त्राणि-शिष्यते एभिरिति, "शासु अनुशिष्टो" धातुसे 'सर्वधातुभ्यः ष्ट्रन्" इस मूत्रसे ष्ट्रन् प्रत्यय / शास्त्रका लक्षण ऐसा किया गया है-"प्रवृत्तिश्च निवृत्तिश्च पुमां येनोपदिश्यते / तद्धर्माश्चोरदिश्यन्ते शास्त्रं शास्त्रविदो विदुः / " अर्थात् पुरुषोंकी प्रवत्ति और निवत्ति एवम् उनके धर्म जिसमे उपदेश किये जाते हैं, उसे 'शास्त्र' कहते हैं / कामप्रसभाऽवरोधिनीप्रसभेन अवरुणद्धाति प्रसभाऽ. वरोधिनी, प्रसभ और अव-उपसर्गपूर्वक 'रुधिर आवरणे' धातुसे णिनि प्रत्यय और स्त्रीत्वविवक्षामें डीप् / कामस्य प्रसभावरोधिनी ताम् (प० त०) / स्वेच्छाचारिताको बलसे रोकनवाली (नलपक्षमें)। कामदेवको बलसे रोकनेवाली (महादेव पक्षमें)। "प्रसभ" के बदले में कहींपर "प्रसरं" पदका पाठ है, उसमें कामस्य प्रसरः ( विस्तारः, वृद्धिर्वा ), तम् अवरुणद्धीति ऐसी व्युत्पत्ति करनी चाहिए। निज.