________________ संक्षिप्त कथासार 1.15 आदि देवताओंकी प्रतिकूलतासे नलके साथ दमयन्तीके विवाहमें असंभाव्यताका वर्णन करना / अनन्तर दमयन्तीके करुणापूर्ण विलापसे पिघलकर दूतकर्म भूलकर नलका अनेक प्रकारसे दमयन्तीको आश्वासन देना। फिर अपने दूतकर्मका स्मरण होनेसे नलका पश्चात्ताप करना, तब हंसका आकर दमयन्तीको निराश न करनेके लिए अनुरोध करना / अनन्तर नलका "इन्द्र आदि देवताओंमें किसी एकको वा मुझे वरण कीजिए" ऐसा अनुरोध कर विचारपूर्वक कार्य करनेकी सम्मति देना। नलको पहचान कर दमयन्तीका प्रसन्न और लज्जित होना। उनकी सखीका नलको वरण करने के लिए दमयन्तीके दृढ निश्चयकी सूचना / यह सुनकर लज्जित होकर नलका देवताओंके साथ स्वयंवरमें उपस्थितिका ज्ञापन कर जाना / अन्त में नलेका इन्द्र आदि देवताओंको दमयन्तीका सब वृत्तान्त सुनाना। इति शम् -:0: नायकादिसिद्धान्त नैषधीयचरितमें राजा नल धीरोदात्त नायक हैं,दमयन्ती परकीया (कन्या) नायिका हैं / ये दोनों विभाव हैं / हंसादि द्वारा नल और दमयन्तीके वर्णन परक वाक्य पुष्प, चन्दन, चन्द्रोदय, वसन्तऋतु, कोकिलशब्द, भ्रमरझङ्कार आदि उद्दीपन विभाव हैं, परस्परनिरीक्षण आदि अनुभाव है / निर्वेद आदि व्यभिचार भा हैं / 17 सर्गतक विप्रलम्भशृङ्गारका पूर्वाराग है, अनन्तर संभोगशृङ्गार है / प्रधान रस शृङ्गार है, करुण आदि अङ्गरस हैं / स्थायी भाव रति है / वैदर्भी रीति प्रधान है कहीं-कहीं गौड़ी भी है, गुण प्रायः प्रसाद है कहीं-कहीं माधुर्य और ओज भी हैं / हंस निसृष्टार्थ दूत है।