Book Title: Naishadhiya Charitam
Author(s): Sheshraj Sharma
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ नैषधीयचरितं महाकाव्यम् - दमयन्तीके विरहसे सन्तप्त होनेपर भी नलके अयाचित-व्रतका पालन कितनी रमणीयतासे वर्णित है "स्मरोपतप्तोऽपि भृशं न स प्रभुर्विदर्भराजं तनयामयाचत / त्यजन्त्यसूशर्म च मानिनो वरं त्यजन्ति न त्वेकमयाचितव्रतम् // 1-50 / नलसे पकड़े जानेपर हंसके मुखसे करुणरसका कैसा सजीव वर्णन है"मदेकपुत्रा जननी जराऽतुरा, नवप्रसूतिर्वरटा तपस्विनी / गतिस्तयोरेष जनस्तमर्दयन्नहो ! विधे ! त्वां करुणा रुणाद्धि नो" // 1-135 महाराज भीमकी पुरीका श्लिष्ट रूपमें कैसा मनोहर वर्णन है"स्थितिशालिसमस्तवर्णतां न कथं चित्रमयी बिभर्तु या। स्वरभेदमुपैतु या कथं कलिताऽनल्पमुखारवा न वा" // 2-68 // नलकी साधुताका वर्णन व्याकरणपाण्डित्यप्रदर्शनपूर्वक कैसी प्रवीणतासे किया गया है क्रियेत चेत्साधुविभक्तिचिन्ता व्यक्तिस्तदा सा प्रथमाऽभिधेया। या स्वौजसां साधयितु विलासंस्तावत्क्षमानामपदं बहु स्यात् // 3-23 / कितनी मार्मिकतासे नलके घोड़ोंका वर्णन अधिकारूढ़वैशिष्टयरूपकसे प्रदर्शित है "विना पतत्त्रं विनतातनूजः समीरणरीक्षणलक्षणीयैः / मनोभिरासीदनणुप्रमाणन निर्जिता दिक्कतमा तदश्वः // 3-37 / कैसी सूझबूझसे नलके गुणोंका अतिशयोक्तिसे अशक्यवर्णन प्रतिपादित किया है "यदि त्रिलोकी गणनापरा स्यात्तस्याः समाप्तिर्यदि नायुषः स्यात् / पारेपरार्ध गणितं यदि स्याद् गणेयनिःशेषगुणोऽपि स स्यात् // 3-40 // चन्द्रमें स्थित कलङ्कको उत्प्रेक्षा और अपहनु तिसे कैसी सजीवतासे दरसाया है "स्मरमुखं हरनेत्रहुताऽशनाज्ज्वलदिदं विधिना चकृषे विधुः / बहु विधेन वियोगिवर्धनसा शशमिषादथ कालिकयाऽङ्कितः" / / 4-73 / इस पद्य में देवताओंका विग्रह नहीं है, शब्द ही देवता हैं ऐसे मीमांसासिद्धान्तको कसी विलक्षणतासे प्रस्तुत किया है "विश्वरूपकलनादुपपन्नं तस्य जैमिनिमुनित्वनुदीये / विग्रहं मखभुजालसहिष्णुर्व्यर्थतां मदनिं स निनाय" // 5-36 /

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 1098