Book Title: Naishadhiya Charitam
Author(s): Sheshraj Sharma
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ भूमिका बागीचे में रहकर अवसर ताकता रहता है / अन्तमें नल और दमयन्तीकी प्रथम . मिलनरात्रिका मनोहर वर्णन करके ग्रन्थ समाप्त होता है। नलोपाख्यानके अनुसार भाई पुष्करके साथ जुंएमें राज्य गँवाकर नलका पर्यटन आदि वृतान्त न होनेसे यह महाकाव्य अधूरा-सा प्रतीत होता है / अतएव कहा जाता है कि इसमें पहले 60 सर्ग थे, परन्तु अभी 22 सर्ग-मात्र रपलब्ध हैं इसमें रस. अलङ्कार, ध्वनि, गुण, रीति आदि अलङ्कार शास्त्रके प्रत्येक विषयसे पूर्ण मौलिकता परिलक्षित होती है / कालिदासकी रचनाओंको छोड़कर पूर्ववर्ती समस्त कवियोंकी रचनाएँ इसके सामने हतप्रभ हो गई हैं / श्रीहर्षने आलङ्कारिकोंके नियमका भी पूर्णरूपसे पालन नहीं किया है, वर्णनोंमें उनकी विलक्षण कल्पनाओंकी उड़ानने सब सीमाका अतिक्रमण कर दिया है / श्रीहर्षने अलङ्कार आदिके प्रयोगोंमें दर्शन और व्याकरणसे उदाहरण लेकर अपनी अनोखी मूझबूझका परिचय दिया है / संस्कृतभाषामें श्रीहर्षका असाधारण अधिकार देखा जाता है / "नैषधं विद्वदौषधम्" यह प्रसिद्ध जनश्रुति है। नैषधको शास्त्रकाव्य कहने में कुछ भी अत्युक्ति नहीं प्रतीत होती है / अलङ्कारोंमें उन्होंने अतिशयोक्ति, अपह नुति, अर्थान्तरन्यास, उपमा, व्यतिरेक, रूपक आदिमें अपना बेजोड़ कौशल प्रदर्शित किया है। यमक आदि शब्दाऽलङ्कारके प्रयोगमें भी वे अपनी सानी नहीं रखते हैं / हाँ भारवि और माघके समान एकाक्षर और द्व यक्षरवाले श्लोकोंका प्रदर्शन कर श्रीहर्षने काव्यशिल्प नहीं दरसाया है, वस्तुतः यह भूषण है, दूषण नहीं है। नैषधीयचरितके 13 वें सर्गके 34 वें श्लोकमें उन्होंने पञ्चनलीका वर्णन करने में अद्भत और असाधारण वैदुष्य दिखाया है / नैषधीयचरितमें प्रसादगुण और वैदर्भी रीतिका पर्याप्त प्रदर्शन होनेपर भी माधुर्य और ओजोगुण और पाञ्चाली आदि रीतिकी प्रचुरता उपलक्षित होती है / इस काव्यरत्नके रसास्वादनके लिए कठिन परिश्रम और परिमाजित बुद्धि अपेक्षित है इसमें दो मत नहीं। अब नैषधीयचरितके कुछ असाधारणश्लोकोंका प्रदर्शन कर इस प्रसङ्गका उपसंहार किया जाता है नलके प्रताप और यशका कैसा मनोहर वर्णन है"तदोजसस्तद्यशसः स्थिताविमौ वृथेति चित्ते कुरुते यदा यदा / तनोति भानोः परिवेशकैतवात्तदा विधिः कुण्डलनां विधोरपि / / 1-14 /

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 1098