Book Title: Naishadhiya Charitam
Author(s): Sheshraj Sharma
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

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Page 8
________________ भूमिका साक्षात्कार करते थे। उनका काव्य मधुकी दृष्टि करनेवाला है और तोंमें उनकी उक्तियां शत्रुओंको परास्त करने वाली हैं, ये बात ग्रन्थके अन्त में स्थित "ताम्बूलद्वयमासनं च लभते यः कान्यकुब्जेश्वराद्यः साक्षत्कुरुते समाधिषु परं ब्रह्म प्रमोदार्णवम् / यत्काव्यं मधुवर्षि, धर्षितपरास्तर्केषु यस्योक्तयः श्रीश्रीहर्षकवेः कृतिः कृतिमुदे तस्याऽभ्युदीयादियम् // "22-153 इस पद्यसे जानी जाती है। महाकवि श्रीहर्षका समय विक्रमकी ग्यारहवीं शताब्दी है / ये न्याय, वेदान्त आदि अनेक शास्त्रोंपर पूर्ण अधिकार रखते थे। इनके ग्रन्थोंका संक्षिप्त परिचय देकर पीछे नैषधीयचरितपर कुछ लिखेंगे१ स्थैर्यविचारणप्रकरण-संभवतः इसमें बौद्धोंके क्षणिकवादका खण्डन होगा। 2 विजयप्रशस्ति-इसमें जयचन्द्र के पिता विजयचन्द्र की प्रशस्ति है / 3 खण्डनखण्डखाद्य-इसमें न्यायकी रीतिका अवलम्बन कर न्यायका खण्डन और अद्वैतसिद्धान्तका मण्डन है / यह अत्यन्त दुरूह और पाण्डित्यका निकषग्रावा माना गया है / बादमें विक्रमकी सोलहवीं शताब्दीके शङ्करमिश्रने इसीकी शैलीपर "वादिविनोद" नामक ग्रन्थकी रचना की थी। 4 गौडोर्वीशकुलप्रशस्ति-इसमें बङ्गदेशके किसी राजाकी प्रशस्तिका __ वर्णन है। 5 अर्णववर्णन-इसमें समुद्रका वर्णन होगा / 6 छिन्दप्रशस्ति-इसमें छिन्द नामके किसी राजाकी प्रशस्तिका वर्णन होगा। 7 शिवशक्तिसिद्धि-नामके अनुसार इसमें भी शिव और शक्तिकी सिद्धि की गई होगी। 8 नवसाहसाङ्कचरितचम्पू-संभवतः राजा भोजके पिता "नवसाहसाङ्क" उपाधिवाले सिन्धुराजका चरित होगा। 6 नैषधीयचरित महाकाव्य-महाकविने इसे "तच्चिन्तामणिमन्त्रचिन्तनफले" कहकर चिन्तामणि मन्त्रके चिन्तनसे फलस्वरूप बतलाया है। इसमें कुल 22 सर्ग हैं रत्नाकर महाकविके "हरविजय महाकाव्य"(जिसमें 50 सर्ग हैं ) को छोड़कर प्रचलित अन्य समस्त महाकाव्योंमें यह विशाल और श्रेष्ठ है इसमें तेरहवां सर्ग 56 श्लोकोंका 15 वाँ सर्ग 63 श्लोकोंका और उन्नीसवां सर्ग 67 श्लोकोंका है / इनको

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