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नमो नमो निम्मलदंसणस्स
दीपरत्नसागर की 555 साहित
नलो नमो निम्ममा सनम
ममी नमो निम्मालसमता અવિનવ દશ પ્રાસાહ-ર
आपलायो ११ की १४)
નવપદ-શ્રીપાલ
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સાધુ
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રાહત
- અરમાર્ચ
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ध्यान्याता
મુનિ દીપરત્નસાગર
મુનિ દીપરત્નસાગર |
__व्यायान साहित्य Print | भाषा पुराती प्रकाशन वर्ष 1990 कुल किताबें +5, कुल पृष्ठ 7 1218 नेट पब्लिकेशन्स, साईझ A-5
साहित्य कृति क्रम 507 से 510
[18] व्याण्न्यान साहित्य यहाँ 4 मुद्रित प्रकाशन है।[1-3] AMAGuशासा और [4] नव-श्रीपाल, 'अभिनवउपदेशप्रासाद' स्वतंत्र व्याख्यानमाला है, 'मन्नह जिणाणं' नामक सज्झायमें निर्दिष्ट श्रावक के 36 कर्तव्य पर 108 व्याख्यान यहाँ समाविष्ट है, प्रत्येक व्याख्यानके लिए दशदश पृष्ठ, प्रत्येक का आरम्भ श्लोकसे, प्रत्येक व्याख्यान में जैनेत्तर प्रसंग, संबंधित कर्तव्य की तात्त्विक व्याख्या एवं समज, जैनकथा तथा कर्तव्य के अनुरूप स्तवनादि पंक्ति की सुन्दर श्रृंखला है |
जिन साधु-साध्वी का क्षयोपशम मंद हो या किसी कारण से वे शास्त्रीय व्याख्यान देने में असमर्थ हो, तो उनके लिए ये व्याखानसंग्रह पूरा चातुर्मास बिताने के लिए एक बड़ा तोहफा है |
'नवपद-श्रीपाल' किताब का सर्जन शाश्वती ओळी के व्याख्यान के लिए हुआ था, जिस में नव पद का अलग-अलग विवेचन है, और साथ में नव दिनों में श्रीपालचरित्र भी पूरा हो जाए, ऊस तरह नव व्याख्यानों का संकलन किया है |
Total Books 555 [1,00,013 Pages] Muni Deepratnasagar's 555 [[23]| Publications on 03/07/2015