Book Title: Muhpatti Charchasara
Author(s): Kalyanvijay
Publisher: Vijaynitisuri Jain Library

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Page 97
________________ श्री श्री श्री १००८ श्रीमद्विजयानंदसूरीश्वरजी (शात्मारामजी) महाराजजी आदि साधु मंडल ठाणे ७ के तर्फ खे वयाऽनु. अंदणा १००८ बार वाचनी। चिठी तुमारी आई, समाचार सर्व जाणा है। यहां सर्व साधु सातामें है, तुमारी साता समचार लिखनाः... मुहपत्ति विशे हमारा कहना इतना ही है कि मुत्पत्ति बंधवी अच्छी है और घणे दिनों से परंपरा चली आई है इन को लोपना यह अच्छा नहीं । हम बंधना अच्छी जाणते है, परन्तु हम दुंदीए लोक में से मुहपत्ति तोडके नीकले है इस वास्ते हम बंध नहीं सके है और जो कहि बंधकी इच्छीप तो यहां बड़ी निंदा होती है और सत्य धर्म में आये हुप लोको के मन में हीलचली होजावे इस धास्ते नहीं बंध सके है सो जाना । अपरंच हमारी सलाह मानते. हो. झे तुमको मुहपत्ति बंधन में कुछ भी हानि नहीं है, क्यों कि तुमारे गुरु बंधते है और तुम नहीं बंधो वह अच्छो बात वहीं है। आगे जैसी तुमारी मरजी, हमने तो हमारा अभिः प्राय लीख दीया है सो जाणना । और हमको तो तुम बांधोगे तो भी वैसा हो और नहीं बांधो तो भी वैसा ही हो, परंतु तमारे हितके वास्ते लिखा है, आगे जैसी तमारी मरजी ।। १९४७ कारतक वदि ०)) वार बुध सखत वल्लभविजय वंदना वांचनी । दीवालो के रोज दश बजे चिठी लिखी है। [ શ્રીમદ્ આત્મારામજીએ મુહપતિ બાંધવા સંબંધે સુરત બિરાજતા મુનિ મહારાજ શ્રી આલમચંદજીને આપેલ તેમના પત્રને પ્રત્યુત્તર -શ્રી મુહપત્તિ ચર્ચાસારના બ્રેક પરથી.] ૭, વર્ષ બીજાના અંક ૨૦ માં આપ લખે છે કે-“લાંબા તાડપત્ર પરથી વ્યાખ્યાન વાંચતી વખતે પૂર્વપુરુષોએ મુહપત્તિ બાંધી, ” આગળ જતાં અંક ૨૨ માં આપ લખો છો કે–“નાના Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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