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सहित आगमन का वर्णन है । नागरिकों की वेश-भूपा, रहन-सहन, दिनचर्या, परिचय भी इस गजल में मिलता है।
ये वो उदाहरण हैं जो न तो इतिहास लेखन की दृष्टि से लिखे गये और न इतिहास लेखन में इनका एतिहासिक महत्व असंदिग्ध है । ऐसी अन्य बहुत सी बिखरी हुई सामग्री को इस शोध प्रबन्ध में समेटा गया है । मुगल काल के तथा उससे सम्बन्धित अनेक रचित काव्यों में तत्कालीन भारत की राजनीतिक एवं सामाजिक अवस्था की सुस्पष्ट झलक मिलती है । अनेक महत्वपूर्ण व्यक्तियों का परिचय उनके कार्यों सहित मिला है । भानुचन्द्रगणिचरित, हीरसौभाग्य काम्य कृपारस कोष आदि ऐसे अनेक ग्रन्थ प्रकाशित भी हो चुके हैं जिनमें मुगल शासकों के कृत्यो तथा नीतियों का वर्णन है।
"आइने अकबरी" अकबर के जीवन का प्रमाणिक ग्रन्थ है। उसमें मुझे उनकी सभा में अथवा किसी रूप में जिन लोगों का उनसे सम्बन्ध था, उनमें जैन साधुओं का विशेष उल्लेख है । उन्होंने अपने लड़के को जैन साधुओं से शिक्षा दिलाई। अकबर की परम्पराओं को जहांगीर ने कायम रखा जो शाहजहां के समय तक चलती रही।
डा० श्रीराम शर्मा ने अपनी पुस्तक "द रिलिजियस पॉलिसी ऑफ द मुगल एम्पररस" में मुगल कालीन साहित्यकारों की बहुत लम्बी सूचियां दी है किन्तु उन साहित्यकारों की कृतियों का इस काल के इतिहास में बहुत कम उपयोग किया है । स्वयं उनकी पुस्तक में भी उन सायित्कारों की रचनाओं के सन्दर्भ नहीं दिये गए हैं।
मैंने शोध प्रबन्ध में ऐसी नवीन सामग्री का प्रचुरता से उपयोग किया है। परिणामों में भले ही अधिक नवीनता न मिले किन्तु नये स्रोतों के कारण पूर्व से निकाले गये निष्कर्षों को बल तो मिलता ही है कई स्थानों पर पूर्व प्रस्थापित निष्कर्षों पर प्रश्न चिन्ह भी लग गया है जिसका निराकरण भविष्य की शोधों द्वारा ही हो सकेगा । कुछ पूर्व के निष्कर्ष पूर्वाग्रह ग्रसित भी प्रतीत होने लगे है। जिनका यथास्थान संकेत दे दिया गया है । जहां तक काव्य ग्रन्थों के वर्णनों की प्रामाणिकता का प्रश्न है उसका समाधान जहांगीर के काल में लिखे गये श्री वल्लभ उपाध्याय कृत विजयदेव सूरि महात्म्य की इन पंक्तियों से हो जाता है :
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