Book Title: Mugal Samrato ki Dharmik Niti
Author(s): Nina Jain
Publisher: Kashiram Saraf Shivpuri

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Page 13
________________ ( 6 ) डॉक्टर शास्त्री के उक्त शब्दों में जैन विज्ञप्ति पत्रों के राजनैतिक सामाजिक सांस्कृतिक, कलात्मक तथा आर्थिक इतिहास की दृष्टि से विशेष महत्व को सरलता से समझा जा सकता है। जैन भण्डारों में केवल धार्मिक ग्रन्थों का ही संग्रह नहीं रहा अपितु एति. हासिक महत्व की बहुमूल्य सामग्री भी वहां उपलब्ध है, किन्तु आचार्य श्रीविजय धर्म सूरि, आचार्य श्री विजयेन्द्र सूरि, मुनि श्री पुण्य विजय जी, मुनि श्री कल्याण विजयजी, डाक्टर हीरानन्द शास्त्री, मुनि श्री जिनविजयजी, मोहनलाल दलोचन्द देसाई जैसे कुछ ही जैन विद्वानों ने ऐसी सामग्री को प्रकाश में लाने का प्रयास किया है तथापि जो कुछ सामग्री प्रकाश में आई भी है उसका एतिहासिक शोध दृष्टि से सम्यक उपयोग नहीं किया गया है। प्रायः जैन विद्वानों ने तथा इतिहा के शोधकर्ताओं ने जैन संग्रह के अनुशील की ओर सम्भवतया इस प्रचलित धारणा के कारण रूचि नहीं दिखलाई कि-"हस्तिना ताड्यमानोडपि न गच्छेज्जैन मन्दिरम्" क्योंकि पुस्तक भण्डार प्रायः जैन मन्दिरों में ही रहते हैं। इस तथ्य से भी इन्कार नहीं किया जा सकता हैं कि जैनेतर सम्प्रदाय के व्यक्तियों से जैन भण्डारों को बचाकर ही रखा गया है तथा वहां सुरक्षित समस्त पुस्तकों को धामिक पुस्तकों की भांति ही केवल संरक्षणीय, पूज्यनीय माना गया है जैन ग्रन्थ भण्डारों के महत्व को प्रकट करते हुए डाक्टर लक्ष्मनदास ने लिखा है "यह कहना आवश्यक नहीं है कि जैनियों के पास जो ग्रन्थ भण्डार हैं वे यूरोप की किसी भी जाति के पास नहीं है वे (यूरोपियन) उन्हें प्राप्त करने के लिए अत्यधिक धन व्यय करने को तत्पर रहते हैं: यह सर्वविदित है कि जर्मनी, फ्रांस एवं इंग्लैंड के विद्वान बहुत से भारतीय साहित्य को ले गये तथा उसका उपयोग वैज्ञानिक, भाषा वैज्ञानिक तथा एतिहासिक खोजों के लिए कर रहे हैं । भारतीयों ने कम से कम 20वीं सदी में इन पाश्चात्य विद्वानों के लेखों को प्रमाणिक वचन के रूप में स्वीकारा तथा उन पर किसी प्रकार से शका करने की आवश्यकता ही नहीं समझी अतः उनके द्वारी प्रस्तुत तथ्यों के खण्डन-मण्डन अथवा कुछ नवीन तथ्यों को प्रस्तुत करने का साहस भी वे नहीं जुटा सके। मेरा भारतीय इतिहास के विद्वानों से विनम्र निवेदन है कि वे अपने-अपने 1. द जैन द्या 1941 पृष्ठ 27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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