Book Title: Mugal Samrato ki Dharmik Niti
Author(s): Nina Jain
Publisher: Kashiram Saraf Shivpuri

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Page 10
________________ आशीर्वचन बयन्तु वीतरागा: बीबाल-बल्लभ • समुद्र सदगुरुभ्यो नमः विजय इन्द्रदिन्न मरि मु.पो. nnel. जि. भरार का पाय है कि त मनति की. नितान्त है। जिस करता म पले पूर्व प्रकार समें अता मानकरी करते हैं। 1 का लाभ मानते। जकी आT Gासना करते।। पान निनी जीत के जान से मापा मगलि रहने है। यह बात प्रसको के विधयों रिशेष रुपसे पति होनी जो निगा लगाओ के जीवी पीत होत उनी नारत - को निक-साहित होता रहता है। मामला र समाज समिर्मित जो नामपसलमी ब्लाक प्रस्तुत पुस्तक की जोरकानी A) नीता ने मात्र इस कमी का अनुभवहीनही कियापत्ते उसे शकाने का भी काम प्रयासी उनको मन ना साहराको ल त्म हो रहा है। निर पर सरकार भी पुका उरकुंश लगत्यसको ला ज ) CARरत पुस्तक में हमें यह जानकारी मिलतीर. yta में मेन में के प्रभारी करित्यासे' माहिर मुरादाहोंने फिराकार गि परमिन्य महासके सपासक समाज के रिक्ता मर्ग मील करारन्त सापक रहती देश मेश रिस्पा मी मलिना कि इस की अधिकाविध प्रचार पर हो पुस्तक का कलह को शाद के १ है। विनोन्द्ररिया परशुराम मंदिर रोड पर डीपरी डान गुर ६ कार जि.मनालार २० २ १८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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