Book Title: Mantri Karmachand Vanshavali Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 98
________________ वाचक गुणविनय रचित श्री करमचंद मंत्रि-वंश प्रबन्ध । ॥एँ नमः॥ ॥ ढाल १, राग-आसाउरी॥ मंगल-प्रस्ताव । फूलवधि-पास प्रणाम करि, वागवाणि समरेवि । श्रीजिनकुसल मुर्णिदपय, हृदयकमलि सुधरेवि ॥ श्रीखरतर-गच्छ राजियउ, युगप्रधान जिणचंद । श्रीजिनसिंह मुनिंदवर जिनि रंजिय नृपखंद ॥ तासु कथनि उवझाय गुरू, श्रीजयसोम सुसीस । वाचनाचारिज गुणविनय, मनि धरि अधिक जगीस ॥ जिनशासन उद्योत कर, करमचंद नृपचंद । तेहनी वंशपरंपरा, प्रभणइ सोहग कंद ॥ ते निमुणउ हरषइ करी, मंत्रीसर परबंध । धर्मवंत गुण गावतां, जिम हुवइ सुभ अनुबंध ॥ भागे कुमरनरिंदना, विमल तणा सुरसाल । गीतारथ गुरू गूंथीया, गुण सुणीयइ सुविसाल ॥ ॥ चउपई ।। पूर्ववंशवर्णन-श्रीकरण । वंशशिरोमणि देवडावंश, देवलवाडइ अधिक प्रशंस । तिहां श्रीसागरभूपति भलउ, सूर वीर विक्रम गुणनिलउ ॥ ७ तेहनइ आठ रमणि गुणवती, पटराणी मानवती सती। मालव पातिसाहि बल जिणइ, जीतउ निज भुजबल करि रणइ ॥ ८ ऊवस तेहनउ कीधउ देस, किम परनई सासहइ नरेश । तेहनइ त्रिण्ह थया सुत सिंह, 'बोहिथ गंगदास जयसिंह ॥ ९ बहिरंगदे बोहिथनी नारि, जिहांथी बोहिथहरां परिवार । आठ पुत्र तेहनइ ए भूप, आठ दिसा पालन गजरूप ॥ १० श्रीश्रीकरण जेसं जयमल्ल, तॉल्हा भीमा अरिउरि सल्ल । पदमा सोमसीह पुनपाल, पदमां भगिनी अतिसुकुमाल ॥ ११ अन्य दिवसि बोहिथ नृपराज, चित्रकूटि आयउ रणकाज। रुद्र प्रेमीण सुभट शत साथि, सूरांनइ जय कहीयइ आथि ॥ १२ रायसिंहजी आगलि भिडयउ, जयत हथउ सुरलोकइ चडयउ। हिव श्रीकरण करणि परकाम, विक्रमनृप जिम थयउ सुधाम ॥ १३ तेहनी रतनादेवी नारी, सोहइ सीलगुणइ संसारि । गढ मंडोरइ जिणइ बलि लियउ, रांणां नाम तिहां पामीयउ ॥१४ तेहना सुत इण नामइ च्यारि, जाणे च्यार वेदविस्तार । समधर वीरदास हरिदास, उर्ऋण पूरइ जगनी आस ॥ १५ गोरीसाहि पजानउ तियइ, अन्य दिनइ मारगि आवीयइ । लीघउ खोसी छलि बलि करी, सेना साहि तणी संचरी॥१६ वीधउ नगर देखि सामु हउ, सूर वीर किम भाजइ कहउ। साँत सुभट शत सेती रणइ, झूझयउ सूर पाछलि जुहरि करि आविआ, सूर सकल रण रस भाविया। परलोकइ रण करीय पहुंता, धरणीपति कहीयइ रजपूता॥ १८ तेह दुर्ग तिणि साहिइ लीद्ध, सामि विना परमेसरि दिछ। हिव जिम ए वंशावलि कही, ते सांभलउ मनइ गहगही॥ १९ रतनादे पहुती कुलघरइ, खेडिपुरइ पहिली अवसरइ। समधर प्रमुख तिहां सुत च्यार, वधिवा लाग्या कला उदार ॥ २० १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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