Book Title: Mantri Karmachand Vanshavali Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

View full book text
Previous | Next

Page 118
________________ वछावतां री वंसावली पतिसाह सल (म? )ख पूरइ पडूर, समपीयो पाट जिनसिंहसूर | दुथि (ख) या समपीयां कोड दान, बछराजवंश वधारि वान ॥ सुथर थीजो पातिसाह, वीडो कोइ झालइ उमई बाह । उमरांव घणा कीयो अगाज, आंगमई नही कोई थटो आज ।। इक मनो हुवई हिंदु हगाल, रायसिंह लीयो वीडो रंढाल । गज हट्ट मेले कोपीयो, (राय ?) सिंघ कीयो कटक ॥ मारकी देखि थट्टर महिम, सांगाउत जाणे सांमिधर्म | जसवंत सामि रइ कांम जांण, पह कन्हई आवीयो तिण प्रमाण ॥ भुज झाले पिरिया तणो भार, सामिधरम अंग जांणई संसार । आयो युद्ध जां जाणे अबीह, सामिधर्म नगाइ करमसीह || रंगरली देखि रीझीया राज, नगराज पाट दीन्हो निवाज । मालीया महल दीन्हा महत्त, सनमान घणो सांकुर सहित ॥ माओ राउ दे महत मान, वाली थित जसवंत वध्यो वान । जस वांच न्नाग ताहरो जांण, नगराज तणा लाधा निवाण ॥ नगराजतई घरि सुणी निद्ध, संपनी तुझ आषाढ सिद्ध । सामिधर्म सदा सोहइ सुतन्न, महि उदयो तिण छल मोटमन्न ॥ जसवंततणो जस जपां जीह, संग्राम नगाइ जिम करमसीह । जसवंत इया विरुद जुगत्त, सुतियाग खाग संग्राम सुत्त ॥ जसवंत सदा गुणभेद जाण, न्नालयल दुवादस तपइ भांण । asar दन आप विशाल, पीरीयां छल जग्यो प्रतिपाल || सांकुर नई सोनो द्रव्य सुचंग, रेणुवा सदा आपइ सुरंग । धन विलसइ उत्तम दया धरम, कीजइ सुकृत सुधरम कर्म ॥ परमेसर देसइ रिद्ध अपार, पसर्यो सउ पुत्रई सपरिवार । जसवंत न समहत्थ सुकाज, जुगताई प्रतपउ अखइ राज ॥ वासना दीपइ सामुदुवेल, हाथ ले मांजइ दलिद्र हेल । सांगोत सहु कामा समत्थ, हाटक बरी उजळइ हत्थ ॥ ॥ कवित्त ॥ haser as as वरे विलसवा बडाइ | वसुह द्रव्य विलसवा सदा घरि रिद्ध सवाइ । करुणामेरु प्रमाण करण कुल तणकै वार । जिके बोल ऊंजला तुंहि ज उद्धई सदार । समत्थ समूरो श्रीकमल सांगाऊत सह वला । जसवंत ताम जीवो जसू किरण सूर ससिहर कला || संवत् १९१८ मिति पोष वदि ११ लीखितं आचारज उदचंद्गणि । Jain Education International For Private & Personal Use Only १०९ १२४ १२५ १२६ १२७ १२८ १२९ १३० १३१ १३२ १३३ १३४ १३५ १३६ १३७ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 116 117 118 119 120 121 122