Book Title: Mantri Karmachand Vanshavali Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

View full book text
Previous | Next

Page 117
________________ १०८ व छा व तांरी वंसावली १०८ ११२ १ . विरुदैत साथ राउत बहुत्त, जांणिजइ जांह उत्तम जगत्त । चढीयो संग्राम कुल धजा चाहि, मुहुतइ सहु छे ली मारवाड । वडनयरइ लाहण करि विख्यात, गोरथई सोरठइं गुजरात । सेजूंज रेवेगिरि करि सनाथ, हइवर चरिस मंमर विहाथ ॥ सुप्रसन्न गोमती करि सनान, द्वारिका लोक सहु ध्रवी दान । वडहत्य संग्राम उदार बात, विमलगिरि सिखर कीयो विख्यात ॥ खरचइ द्रव्य वलीयो मुजस खाट, पहुं सांगो तेडइ मेदपाट । जेवडो गात संग्रा जाण, पत गरीयो रांणइ तिण प्रमाण ॥ सर्व मिलने (१४०) चाल सो गांम संग्राम चाहि, समपीया रीडवे उदयसाह । सांमध्रम पिणे सांगो समत्थ, हेठा हमीर खांचीयो हत्थ ॥ पह कल्लेराउ परट्यो प्रधान, महुतानइ दीन्हो बहुत मांन । गइ रे वहइ वर ले संग्राम, संतोष राण आयो सकाम ॥ उगणीसो मयल अति आथग, रथ रहस्यो लोग प्रांमनइ थाग । उ धुल अन्न दीजइ अपार, संग्राम कीयो साको संसार ॥ क्रिया उद्धार जिणचंद कीध, लखमी खरचि सोभाग लिद्ध । मुधर्म कर्म आपइ सुदान, वै छैल ध्रव्या अढार बन्न । प्रतीपीयो सिंघ कल्याण पाट, खइगा लख लांखित धणी खांट । आखाट सिद्ध देखइ अगाह, पतगरीयो रासइं पतिसाह ॥ बइठउ रिम रासो भूला बोल, इवराम जुद्ध नांखीयो तोल । अहम्मदहुसेन भड जिसा मार, साहि थल सत्र कीया पैमाल । समयांणा आबू दुरंग साध, आकंप जास भयो उत्तराध । जालोर विहारा कीया जेर, आंणीया एक गमीया अंधेर ।। चक्रवर्ति संघरइ करमचंद, सहु सत्र कीया संग्राम नंद । हाजी बलोच आजान, बाहरव युद्ध जीतो रिम राह वान ।। सइ पांच पिमुण सिरदार सात, विढिया कमल ऊबरीय बात । किट्टी य राहर किता कंद, मोखलीया महुतइ किता छंद । पइंत्रीसई दीन्हा अन्न अपार, सरजीत कीयौ सगलो संसार । हाथी हइवर हाटक हिरन्न, कवि पात्रा दीजइ दान करन ॥ लाहिणी लाहि नवि खंड लाख, सहु ऊरण कीयो संसार साख । पतिसाहतणा पूरई प्रधान, महि लाधा मोटा मुहत मांन । जाणी न वात हुइ जि काय, रायसंघ करमचंद पडी राय । पह कमो गयो पतिसाह पास, विशरियइ रांय लियइ ग्रास वास ॥ अदभुत मत्त देखइ अगाह, पत गरीयो मुहतो पतिसाह । पडगन्न(ना) गज समपीया देस, निध दृणी चउणी चधी नेस ॥ ११६ ११७ ११८ TP १२२ १२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 115 116 117 118 119 120 121 122