Book Title: Mantri Karmachand Vanshavali Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

View full book text
Previous | Next

Page 103
________________ १०६ १०९ १११ ९४ वाचक गुण वि न य रचित मंत्रीस करि जिनपूज पहिली समरि श्रीनवकार, सागार अणसण लेइ सरणा च्यारि करिय उदार। लूणकर्ण आगइ रणि भिडी सुरलोक लीलालीन, मानवंत पुरुष कहउ किसुं किम थाइ मनमइ दीन । विक्रम०॥ १०५ राजसी मेघा मंत्रि श्रीपरतापसिंह हज़र, परलोकि पहुंता रण करी किम मुडइ जे हुइ सूर। लूणकर्णजी निज राजमुद्रा जयतसीनइ देइ, रवि तेज निज जिम सांझि वेला वेसानरहि ठवेइ ॥ विक्रम०॥ हिव जयतसी नृप राज्य पालइ वैरिगजघटसिंह, तेहना सुत कल्याणमल श्रीमालदेव नृसिंह। भीम कान्ह ठाकुरसीह श्रीकसमीरदेवीजात, पूर्णमल्ल सुरजनसिंह अचला मान श्रीरंग कहात ॥ विक्रम०॥ १०७ वरसिंह मंत्री तेहनइ थप्पियउ गुणहि गंभीर, शीलवंत वीझादेवि तमु जसजित्त गंगानीर। चांपानयरि छम्मास मदफरसाहि सेवा किध, पुंडरीकगिरिजात्रा तणउ फरमाण करावी लीध । विक्रम०॥ १०८ गढतणी कूची हाथि जसु सवि देसनउ रखपाल, गिरिविमल-अर्बुद-रैवतइ करि संघनी संभाल। जात्रा करी लाहण दियइ मारगइ मदफरसाहि, बहु मानीयउ मंत्री तिहां आणी निज मंदिर मांहि । विक्रम०॥ सत्कार जिनि मंडावीयउ युग जैन-प्रवचन-मात, शर चंद्र (१५८२) वरषि देराउरइ जिनकुशलसूरिनी जात। करिवा मत्यउ नवि कर सकइ सांमुहउ आवि बइठ, निसि सुपनी आवी इम कहइ मुझगडाले करउ रे पइठ ॥विक्रम०॥ ११० इहां थकी जात्रा मानिस्युं मत करउ कोइ प्रयास, श्रीगडालातीरथ थयउ सवि पूरवइ मन आस। वरसिंहना सुत हिव थया मेघराज श्रीनगराज, मंत्रि अमर श्रीभोजराज डुंगरसी हसधर हसराज । विक्रम ॥ मेघराजना सुत साहसी थया पदमसी बइरसीह, पदमशीह सुत श्रीचंद मति करि मंत्रिया महिसीह । वइरसिंहना सुत दोइ दोसइ सदारंग-कपूर, हरिराजनउ सुत योध तमु सुत भइरवदास अकूर। विक्रम०॥ ११२ भोजराज सुत वर राम कहीयइ अमरसिंह तनूज, सीपा सीहा सीमा सुणीजइ करइ जिनवर पूज। सिंहराज वलि सिवराज हिव सीपा तनूरुह च्यारि, अर्जुन महं खीमसीह सुरजन झाझणसी सुविचार ।। विक्रम०॥ ११३ जेसिहदे जीवराज जगहथ मंत्रि सीहा पुत्र, सीमा तनुज राघव पंचा हम्मीर प्रमुख सुमित्र । रायमल्ल रासा प्रमुख श्रीसिंहराज मुत सुवदीत, घडसीह जगमालादि सुत सिवराजना अधिक विनीत । विक्रम०॥ ११४ डुंगरसीह सुत नरवद भणीजइ तासु सुत परधान, मंत्रि अचल भारहमल्ल लाखणसीह प्रमुख समान । राउ जयतसीहइ थप्पियउ मतिमंत श्रीनगराज, गिरिराज श्रीगिरिनारि जात्रा करि भवसागर पाज । विक्रम० ॥११५ प्रतिग्रामि लाहण साहमी घरि करी तिणि अभिराम, अन्यदा श्रीमालदेव भूपति जंगली पुर गाम । लेवा भणी सेना सजी आविवा लागउ जांम, नृप भणइ मंत्री मंत्र करि राखउ अह्मारी मांम ।। विक्रम० ॥ ११६ नगराज मंत्रीसर विमासइ सब्बल श्रीमालदेव, विग्रहइ किम पूजियइ ए स्यु हिवइ सारइ देव । पर निरबल नृपथी काज एहवउ सरइ किणही न आज, एरंड द्रुमि गजराजनी किम भाजइ सवली खाज ।। विक्रम०॥ ११७ छीलर जलइ मन हउंस पूरइ हंसनी कहि काइ, आभरणि पीत्तल तणे हेमनी हाम नवि पूराइ। सुरताण श्रीसेरसाह सेवा करी कीजइ काम, ए मंत्र करी चाल्यउ नगउ किम लागइ सोनई सांम ॥ विक्रम ॥ ११८ करि भेटि करिवर करभ हयवर रंजियउ मुरताण, पाछलि कुमर कल्याण सरसइ मूकीयउ भय जाण । राजलोक पुणि तिहां गयउ हिव तिहां आवीयउ नृपराज, मालस्युंसाह्मउ झूझीयउ किम शरभ सहइ घनगाज।।विक्रम०॥११९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122