Book Title: Mantri Karmachand Vanshavali Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 114
________________ व छा व तांरी वंसावली पतिसाहतणइं दरझालि पान, खड आयो खाय माथे खान । सेने सनाह मुहुतो सप्राण, परचीयो करन उपरि पठाण ॥ दल देख करमसीतणा दुट्ठ, पग छाडि खांन पडायो अपुट्ठ । कुंभाहर परण्यो राउकरणं, दिलसीयां माहल हरनों वरन्न । कोडि द्रव्य खरचीया करमसींह, दिन्ही प्रवाह दस वीस दीह । परठीयो करमसी जिनप्रसाद, नागदेव वंस वाधार वाद ॥ लेखइ धरम खरचइ सात लाख, सोभागि हुओ जग साखि साखि । जिनहंसमरि दे पाट जाण, विलसीया लाख बधीया वखाण ॥ सौभाग्यवंत महुतो सनूर, कीजइ आवास कुरला कपूर। गढ सेचुंजइ परसण गिरनार, प्रारंभ कीधो मुहुत्तो अपार ॥ रूपसी कुंवरदे करणराय, संघ हुओ लाख करमट सहाय । कर तीरथयात्रा कीयो कोड, जगतहर जुहारे मुकर जोड । लाहणे लाख खरचीया लेख, वलीयो वडयात्रा करि विशेष । वरसंघ करमसी सरस वीर, सहु सूत्र आधझालो सधीर ॥ कंचूक मांडवी कपुर कांमि, सांमधरम पेख समपीया सामि । बूटो महल्ल पडीयो बहुत्त, सत्त छांडि मात मेल्हीया सुत्त ॥ कीयो सतरइ दयन शत्रुकार, जीवार कोडि कोडि जीवार । बलवंत वछावत समा बेउ, दवटयो बयासीयो अन्न देऊ ॥ पूरा जिण कीया दान पुण्य, परवार तेण वधीयो प्रसन्न । प्रारंभ जात कीयो प्रमाण, आगलई सुणी असपत्ति आणि ॥ हिव यात्रा न होवइ हुइ हटक्क, क्र(कर)णराउ साथि दीया कट्टक । वरसिंघ मेलि पतिसाह वग्ग, जिण तीरथ मुगता कीया जगग ॥ बाजीद सुनहरीसुं वसत्त, मानीयो साह दीन्हो मुहुत्त । पूजीया तित्थंकर आप प्राण, वरई वधीयो वरसंघ वखांण ॥ पुर पाटण लाहण दे प्रसिद्ध, आवीयो सिंघ आषाढ सिद्ध । जनमीयो सिंघरई नगाराज, ससमत्थ सकज मोटो सकाज ॥ पेसीयो करनराय खांन खेत, निहसीयो नग्गो बांधीयो तेज । जइतसी करणराय मच्यो जंग, भांजीया नगो भाटी अभंग ॥ हाजीखान राठेलि रोहेलि, बूहा बलोच सामुद्दवेल । रुद्राला वेस पडी रोल, निहसीयो करणराउ नारनोल ॥ १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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