Book Title: Mantri Karmachand Vanshavali Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 109
________________ १०० बाचक गुणविनय रवित साहुकमि श्रीमंत्रीजी गुरू० २ आपि रहे रोहितासी साधु० । अंतेउर रक्षा भणी गुरू० २ जाणी मंत्रि वेसास साधु० ॥ कासमीर साहियर लियउ गुरू० २ अमर हूअउ रिपुराज साधु० । साहिनजरि अमृतसर गुरू० २ किम करइ तेह अकाज साधु० ॥ वैरि-वृंद जीपी करी गुरू० २ आए श्रीलाहोरि साधु० । साहि सनमुख बोलाइया गुरू० २ सद्गुरु आए भोरि साधु० ॥ ॥ ढाल ११, चतुरसेनही वाहलां - ए देशी ॥ पदवीदान अने उपसंहार । दे आसीस सुगुरू तिहां, बइठे साहि हजूरइ रे । धरम- गोठि श्री साहित्युं, करइ दयारस पूरइ रे | श्री जिनशासन चिर जयउ - आंकणी । Jain Education International २४१ For Private & Personal Use Only २४२ २४३ मानसिंहनी वरणना, श्रीजी श्रीमुखि मंडी रे । बहुत बहुत इनकुं कह्या, पुनि तुझ रीति न छंडी रे || श्रीजिन० ।। २४५ कसमीरमारग दोहिलउ, जलि उपले करि पालइ रे । लंध्यउ संयम पालता, उपरि पडतइ पालइ रे || श्रीजिन० ॥२४६ हुकम हमार इनि तिहां, सर जलचरि छोडाइ रे । रहम करी तुझ एहन, अपनी देहु वडाइ रे || श्रीजिन० ॥ २४७ साहि हुकम गुरू मानीयउ, दूधमइ साकर वाही रे । पहिलउइ गुरू मन हुतउ, साहिइ ते वलि साही रे ॥ श्रीजिन० ।। २४८ श्रीसाहिर बलि पूछीयउ, मंत्रीसर बोलाइ रे । जिनशासनि कुन नाम छइ, जिनतइ अधिक भलाइ रे || श्रीजिन० ॥ २४९ तब मंत्रीसर वीनवइ, हम गछि देवे दीघउ रे | युगप्रधानपद पूरवइ, कहउ किनकुं अउ सीधउ रे ।। श्रीजिन० ।। २५० नागदेव श्रावक हूअउ, तिणि अठम तप कीनउ रे । युग-प्रधान युग कुण अछ, तव देव सांनिधि दीनउ रे || श्रीजिन० ॥ २५१ सोवन अक्षर तुझ करइ, प्रगट करेस्यइ सोइ रे । युग-प्रधान तुं जाणिज्यो जिम तिम नाम न होइ रे ॥ श्रीजिन० ॥ २५२ जिनदत्तसूरि वाचीया, बीजइ किणही न दीठा रे। जां घृत स्वाद लीयउ नही, तेल हुबइ तां मीठा रे ॥श्री जिन० ॥ २५३ अवर रितां लगि भला, जांन चडइ करि एहा रे । अहरटमुख तां जोइयइ, जां वरसइ नवि मेहा रे ॥ श्रीजिन० || २५४ तब श्रीसाहि हुकम करइ, युग-प्रधान जिनचंदो रे । आचारिजपद शिष्यकुं, दोउ करउ आनंदो रे || श्रीजिन० ।। २५५ वली मंत्री साहिन कहइ, इहां अमारी पालीजइ रे । अमृत त्रिस भाजइ नही, जइ वली वली अमृत पीजइ रे || श्रीजिन० || २५६ खंभात-मं(i) दिर तणी, सागर-मछली छोरी रे । एक सालि लीला करउ, कहिज्यो जे करइ चोरी रे || श्रीजिन० ॥ २५७ एक दिवस लाहोरमइ जीव सवे उगार्या रे । पाप करमथी पापीया, साहि हुकम सवि वार्या रे ॥ श्रीजिन० ॥ उच्छव दिनि साहियइ दीया, निज वाजा गजघाटइ रे । रायसिंह राजनइ विनवी, दानइ दारिद काट रे || श्रीजिन० || २५९ २५८ 1 २६० हम्म घरि घरि दीया, इक चूनडी सुरंगी रे । पूगीफल नालेरस्युं, सेर खांड तिम चंगी रे || श्रीजिन० ॥ सधव वधू मिलि आपीयउ, राती जागर नीकउ रे । फागुण-सुदि द्वितीयादिनइ, करइ काउ श्रीजीकउ रे || श्रीजिन० ॥२६१ युग-प्रधानजी थापीयउ मोटइ नंदि मंडाणइ रे । आचारिज मानसिंहनइ, मिलि नर नारि वखाणइ रे ।। श्रीजिन० ॥ २६२ नाम दीयउ गछनायक, देखी सिंहनउ दावउ रे । श्रीजिनसिंहसूरि श्रीमुखइ, चंद्र लगइ जो चावउ रे ॥ श्रीजिन० ॥ पाठकपद दिवरावीय, श्रुतसागर मनि आणी रे । सुहगुरू श्रीजय सोमनइ, रत्ननिधानइ जाणी रे ॥ श्रीजिन० ॥ वाचकपद गुणविनयनइ समयसुंदरनइ दीधउ रे । युग-प्रधानजीनइ करइ जाणि रसायण सीधउ रे || श्री जिन० ॥ याचक लोक भणी इहां, देवउ कोटी दानो रे । नवे गाम नत्र हाथीया, हय पांचसय प्रधानो रे ।। श्रीजिन० ॥ २६३ २६४ २४४ २६५ २६६ www.jainelibrary.org

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