Book Title: Manjil ke padav
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 143
________________ गणि सम्पदा १२५ - पहले दी गई वाचना को पूर्ण हृदयंगम करा कर आगे की वाचना देना । ३. परिनिर्वाप्य वाचना ४. अर्थनिर्यापणा -- अर्थ के पौर्वापर्य का बोध कराना । मति सम्पदा छट्ठी सम्पदा है मति सम्पदा । उसके चार विकल्प हैं- १. अवग्रह २. ईहा ३ अवाय ४. धारणा । इस संपदा का अर्थ है - आचार्य का मस्तिष्क सुपर कम्प्यूटर होना चाहिए, तभी संघ के विकास को बल मिल सकता है । प्रयोग संपदा सातवीं संपदा है -- प्रयोग सम्पदा । आचार्य में प्रयोग करने की कुशलता होनी चाहिए । वह अपनी शक्ति को देखकर वाद करने वाला होना चाहिए, परिषद् और क्षेत्र को देखकर वाद करने वाला होना चाहिए । प्रयोग सम्पदा का अर्थ है-वाद का पोषण | आचार्य को कब वाद करना चाहिए और कब नहीं करना चाहिए, यह ज्ञान होना आवश्यक है ? वाद कौशल के चार विकल्प बतलाए गए हैं— १. आत्म परिज्ञान -- वाद या धर्म कथा में अपने सामर्थ्य का परिज्ञान 1 २. पुरुष परिज्ञान - वादी के मन का ज्ञान, परिषद् का ज्ञान | ३. क्षेत्र परिज्ञान - वाद करने के क्षेत्र का ज्ञान । ४. वस्तु परिज्ञान --- वाद - काल में निर्णायक रूप में स्वीकृत सभापति आदि का ज्ञान । संग्रह संपदा आठवीं सम्पदा है - संग्रह सम्पदा | संघ की व्यवस्था एवं विकास के लिए शिष्यों का संग्रह और वर्षावास के क्षेत्रों का संग्रह अपेक्षित होता है । स्वाध्याय तथा शिष्यों में यथोचित विनय की व्यवस्था को बनाए रखना - ये सारे क्रम प्रयोग सम्पदा से जुड़े हुए हैं । आचार्य की ये आठ सम्पदाएं और ऋद्धियां हैं । इनसे सम्पन्न आचार्य स्वयं शक्तिशाली होता है, संघ शक्तिशाली होता है । इन आठ सम्पदाओं की तेरापंथ के सन्दर्भ में मीमांसा करें। किस-किस आचार्य में कितनी - कितनी सम्पदाएं विकसित थीं, यह अन्वेषण का विषय हो सकता है । यदि वर्तमान को देखें तो कहा जा सकता है - पूर्ववर्ती आठ आचार्यों की सम्पदाओं को एक ही जगह नियोजित कर दिया गया है | यह तेरापंथ का सौभाग्य है- उसे ऐसे आचार्य मिले हैं, जो आठों सम्पदाओं से सम्पन्न हैं । उनके नेतृत्व में तेरापंथ अध्यात्म के सर्वांगीण विकास के लक्ष्य की उपलब्धि के लिए समर्पित है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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