Book Title: Manjil ke padav
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 204
________________ १८६ मंजिल के पड़ाव दूसरों के लिए ही नहीं, अपने लिए भी खतरा बन जाता है। इस इन्द्रजाली भय और आतंक से तभी बचा जा सकता है, जब अवक्तव्य की मर्यादा का बोध होता है। व्यावहारिक एवं सामाजिक जीवन की स्वस्थता और पवित्रता का यह अमोघ मंत्र है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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