Book Title: Manjil ke padav
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 212
________________ मंजिल के पड़ाव पर नियंत्रण नहीं हो सकता । उसके बिना मनुष्य को यह बोध नहीं होता कि मुझे अपना परिष्कार करना है। हम मार्कोस दंपती की घटना को लें। उन्होंने कितना विलासिता का जीवन जीया। उनके पास जूतों की इतनी जोड़ियां थी कि नौ वर्ष तक उन्हें बदल बदल कर पहना जाए तो भी किसी का दुबारा नम्बर न आए। लोग कहते है-धर्म की क्या जरूरत है ? साम्यवाद आएगा तो धरती पर स्वर्ग उतर आएगा। क्या यह सम्भव बना? इन्द्रिय-संयम की बात जुड़े धर्म के बिना, संयम शक्ति या नियंत्रण रहे बिना मनुष्य कहां तक चला जाता है, इसका एक निदर्शन है मास दम्पती । इसका दूसरा निदर्शन है पनामा के राष्ट्रपति जनरल नोरिएगो । उसे कुछ वर्ष पहले अपदस्थ किया गया। उसकी विलासिता भी चरम सीमा को पार कर गई। उसने पांच अरब डालर की संपत्ति इकट्ठी कर ली । न जाने वह कितना ऐय्याश और अपराधी वृत्ति का था। यह सारा क्यों होता है ? इन्द्रिय का संयम धर्म के बिना नहीं आ सकता। हमने धर्म को भुला दिया और समाज व्यवस्था को सब कुछ मान लिया । अगर समाज में दण्डशक्ति और विलासिता इतनी नहीं होती तो इतना अनर्थ कभी नहीं होता । इंद्रिय-संयम की बात समाज व्यवस्था और राजनीति के साथ जोड़ी नहीं गई इसीलिए यह सब हुआ। धर्म ने नियंत्रण की शक्ति के ऐसे तत्त्व का विकास किया, जो समाज और राजनीति के लिए बहुत उपयोगी है पर उस तत्त्व को स्वार्थी लोगों ने समझा नहीं अथवा उसे जानबूझकर अनदेखा कर दिया। यदि उस शक्ति के तत्त्व को समझा जाता तो समाज में विषमता का इतना जहर कभी नहीं फैलता। इन्द्रिय-संयम का मूल्य आंके हम इस सचाई को समझे-जब तक संयम या परिष्कार की बात नहीं आएगी तब तक ऐसी स्थितियां पैदा होती रहेंगी। संयम की शक्ति को पहचाना जाए, उसका प्रचार किया जाए तो इस समस्या को समाधान मिलेगा। कौटिल्य ने लिखा-'जो शासक बनता है और इंद्रिय का संयम नहीं करता है, वह प्रजा का नाश कर देता है।' यदि परिष्कार की बात नहीं आएगी तो मार्कोस और चाऊशेस्कुओं की श्रृंखला बढ़ती चली जाएगी। कभी भी भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों को रोका नहीं जा सकेगा। इन्द्रियसंयम की बात को जोड़े बिना परिष्कार की बात सफल नहीं हो सकती। इंद्रिय-असंयम और लोभ की वृत्ति इतनी बलवान है कि आदमी नियंत्रण रख नहीं सकता। हम इंद्रिय-संयम का मूल्य समझे। धर्म और संयम कितना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220