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मंजिल के पड़ाव
दूसरों के लिए ही नहीं, अपने लिए भी खतरा बन जाता है। इस इन्द्रजाली भय और आतंक से तभी बचा जा सकता है, जब अवक्तव्य की मर्यादा का बोध होता है। व्यावहारिक एवं सामाजिक जीवन की स्वस्थता और पवित्रता का यह अमोघ मंत्र है।
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