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________________ देहे दुक्खं महाफलं एक नया दर्शन, जो इसी शताब्दी के आसपास प्रगटा है, उसका नाम है अस्तित्ववादी दर्शन । इसे जैन दर्शन और अनेकांत के सन्दर्भ में पढ़ा जाए तो ऐसा लगेगा-इसमें कोई नई बात नहीं है । किन्तु यह पश्चिमी जगत् में बहुत चर्चित हो रहा है । इसका मूल आधार है- हम अस्तित्व से बहुत दूर चले गए हैं, वास्तविकता से दूर चले गए हैं। भौतिकता या पदार्थ की बहुलता के कारण हमने अपने अस्तित्व को भुला दिया है। हमारी अपनी स्वतन्त्रता नष्ट हो गई है। हमें अपने अस्तित्व को पहचानना है, अपनी स्वतन्त्रता को प्राप्त करना है, इन बन्धनों से दूर रहना है आदि-आदि अस्तित्ववादी दर्शन के प्रत्यय हैं । जो मोक्षवादी या आत्मवादी हैं, उनके लिए ये कोई नई बातें नहीं हैं। तीन मूल्य अस्तित्ववादी दर्शन के विद्वान् फक्ले ने तीन प्रकार के जीवन मूल्यों का प्रतिपादन किया १. रचनात्मक मूल्य २. प्रयोगात्मक मूल्य ३. अभिवृत्त्यात्मक मूल्य पहला मूल्य है-व्यक्ति का दृष्टिकोण रचनात्मक होना चाहिए। दूसरा मूल्य है-प्रयोगात्मक-अपनी स्वतन्त्रता के लिए विविध प्रकार के प्रयोग करना। तीसरा है निर्भय होकर, साहस के साथ कठिनाइयों को झेलना। अस्तित्व तक पहुंचना है तो साहस के साथ समस्याओं को सहना जरूरी है । जो अपना विकास चाहता है, अस्तित्व का विकास चाहता है, वह अपने अस्तित्व को इन्कार नहीं कर सकता । व्यापक धारणा ___ अस्तित्ववाद का एक सूत्र यही है-तुम क्या बनना चाहते हो । हम जैसा बनना चाहते हैं, वैसा बन सकते हैं। हमारी शक्ति है, सामर्थ्य है, इसीलिए हम अपना इच्छित निर्माण कर सकते हैं । यह तथ्य है-जो व्यक्ति कुछ बनना चाहता है, चित्त समाधि चाहता है, उसे बदलना होगा, समस्याओं और कठिनाइयों को झेलना होगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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