Book Title: Manjil ke padav
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 201
________________ २ सब कुछ कहा नहीं जाता वक्तव्य : अवक्तव्य दो शब्द बहुत प्रचलित हैं वक्तव्य और अवक्तव्य । दर्शनशास्त्र में ये दोनों शब्द बहुत चचित हुए हैं । वेदान्त ब्रह्म को अनिर्वचनीय मानता है । जैन दर्शन के अनुसार कोई भी पदार्थ वक्तव्य नहीं है । बुद्ध ने दस धर्मों को अव्याकृत बतलाया। इसका अर्थ एक ही है-कहा नहीं जा सकता । जो अवक्तव्य है, उसे कहा नहीं जा सकता । दार्शनिक क्षेत्र में वेदान्त का ब्रह्म निरपेक्ष है। निरपेक्ष सत्य कभी वचनीय नहीं होता इसीलिए वेदान्त में ब्रह्म को अनिर्वचनीय कहा गया । जैन दर्शन के अनुसार पदार्थ अनंतधर्मा है। कोई भी शब्द ऐसा नहीं है, जो अनंत धर्मों को एक साथ कह सके । इसीलिए कहा गया-पदार्थ अवक्तव्य है । भगवान् बुद्ध ने साधना की दृष्टि से कहा-यह जितना तत्त्ववाद है, वह व्यक्ति को उलझाने वाला है। केवल आर्य सत्यों की साधना करो, उन्हें जानो। इन तात्त्विक उलझनों में पड़ने से कोई फायदा नहीं है। ये सब अव्याकृत हैं। इनका व्याकरण नहीं किया जा सकता । गोपनीयता की शपथ व्यवहार के क्षेत्र में भी अवक्तव्य का प्रयोग होता है । उसमें अवक्तव्य का अर्थ यह नहीं है कि कहा नहीं जा सकता। जहां मूल्यों की बात होती है वहां कहना चाहिए या नहीं चाहिए-यह भाषा आ जाती है। कहा जाता है-अमुक बात को कहो मत, फैलाओ मत, वह अवक्तव्य है । यहां अवक्तव्य का अर्थ बदल जाता है, वह आचार बन जाता है । व्यवहार के क्षेत्र में अवक्तव्यता का बहुत महत्त्व है । जो व्यक्ति बड़े पद पर जाता है, लोकसभा या राज्यसभा में जाता है, राष्ट्रपति, राज्यपाल या मंत्री बनता है, उसे पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई जाती है। इसका अर्थ है-जो बात गोपनीय है, उसे प्रकाशित न करे । जो राष्ट्र के गोपनीय तथ्य हैं, उन्हें सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। वे अवक्तव्य रहेंगे । एक साधु के लिए भी, जो संघ का सदस्य होता है, गोपनीयता रखना अनिवार्य होता है। वह हर किसी बात को प्रकाशित नहीं कर सकता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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