Book Title: Manjil ke padav
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 193
________________ कालं काले समायरे १७५ काम हो सकता है । यदि लय के विपरीत चलें तो कार्य में गड़बड़ हो सकती है। इस जीवन की लय के बारे में सोचा गया तो पता लगा-इसका मतलब है ओज आहार की लय । इसका सम्बन्ध है ओज आहार से, हमारी प्राणधारा से। काल से जुड़े प्रश्न हमारी प्राणधारा सदा एक रूप नहीं बहती। ओज आहार भी अपना काम काल के साथ करता है। प्रातःकाल, मध्याह्न और सायं प्राणधारा का प्रवाह विभिन्न प्रकार का रहता है। इसका पता लगाया गया है-प्राण का प्रवाह किस समय किन अवयवों के साथ रहता है। पश्चिम रात्रि में तीन बजे से पांच बजे तक का जो समय है, उसमें प्राण का प्रवाह फेफड़ों के साथ रहता है । यह विभिन्न अवयवों के साथ बदलता रहता है इसीलिए यह सुझाया जाता है-यदि दांत का दर्द है, दांत को निकलवाना है तो किस समय निकलवाओ, जिससे पीडा कम हो। आंख का इलाज कराना है तो किस समय कराओ। पेट की दवा लेनी है तो किस समय लो--- ये सारे प्रश्न काल से जुड़े हुए हैं। समान नहीं है समय __आयुर्वेद में उल्लेख है-औषधि लानी है तो किस नक्षत्र में, किस मुहूर्त में किस समय लाई जाए ? किस अवयव के लिए दवा किस समय लेनी चाहिए । आयुर्वेद में इसका पूरा विवरण मिलता है । इस जीवन की लय पर बहुत सूक्ष्मता से विचार किया गया। इस आधार पर हम कह सकते हैं-चौबीस घंटा समान नहीं रहता। कार्य-दक्षता और भावना में उतारचढ़ाव आता रहता है । इस आधार पर यह भी माना जा सकता हैप्रातःकाल अंतराय कर्म का क्षयोपशम कम होगा। पश्चिम रात्रि में मोहनीय कर्म का क्षयोपशम ज्यादा होगा। कहा गया-ग्यारह बजे तक श्रमसाध्य काम नहीं करना चाहिए। मजदूर लोग भारी भरकम काम दोपहर बाद करते हैं तो ठीक होता है । यदि उसे प्रातःकाल करेंगे तो दिक्कत आ जाएगी। - इसका अर्थ है-उस समय शक्ति का विकास कम होता है, अंतराय कर्म का क्षयोपशम कम होता है। प्रातःकाल ज्ञानावरण का क्षयोपशम अच्छा होता है । यदि कुछ कंठस्थ करना है तो उसके लिए प्रातःकाल का समय उपयुक्त है । सोचने के लिए वह बहुत उपयुक्त समय नहीं है । कर्म बंध और काल एक व्यवस्था दी गई पढम पोरिसिं सज्झायं बीयं झाणं झियायई । पहले प्रहर में स्वाध्याय करो, दूसरे प्रहर में ध्यान करो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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