Book Title: Manjil ke padav
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 168
________________ १५० सम्यक् - दर्शन होगा, वह मिथ्या ग्रहण नहीं करेगा । योगवाहिता तीसरा साधन है योगवाहिता - योगवाही होना । योग के दो प्रकार है - ध्रुव योग और अध्रुव योग । जिस समय जो कार्यं करणीय होता है, वह हमारा ध्रुव योग है । आहार के समय आहार, ध्यान के समय ध्यान, स्वाध्याय के समय स्वाध्याय, यह है ध्रुव योग ।) ध्रुव योग को हीन न करें । जो जिस समय पर करणीय है, वह उसी समय करें । नियमित होनी चाहिए दिनचर्या । यदि स्वाध्याय करना है, तो स्वाध्याय करते समय वृत्तियों को उसके साथ न जोड़ें | यदि कषाय, आसक्ति और मूर्च्छा प्रबल होगी तो जो लाभ स्वाध्याय में मिलना चाहिए, वह नहीं मिल पाएगा । इसीलिए आचार्यों ने विधान किया - स्वाध्याय के साथ योगवाहिता चलनी चाहिए, तपस्या चलनी चाहिए । आहार का संयम होगा, तो स्वाध्याय बहुत फलदायी बनेगा । जब स्वाध्याय करना है, पेट को थोड़ा विराम देना होगा । विशेष साधना के प्रयोग करने हों, तो साथ में आहार का संयम करना चाहिए । इसका नाम है योगवाहिता । वात, पित्त और कफ उत्तेजित न हों, इस बात का ध्यान देना, यह है योगवाहिता । इसका एक अर्थ यह भी हैयोग का वहन करना, ध्यान में जाना, चित्त की एकाग्रता करना । क्षांति--क्षमणता मंजिल के पड़ाव चौथा सूत्र है क्षांति-क्षमणता । क्षान्ति का अर्थ है शक्ति ओ रक्षमण का अर्थ है सहन करना । इसका संयुक्तार्थ है - शक्तिशाली होते हुए सहन करना । संस्कृत साहित्य में क्षमा और सहन करना एक शब्द है । कायर और कमजोर आदमी कभी सहिष्णु नहीं बन सकता । एक ही धातु के दो अर्थ हो गएसमर्थ होना और सहन करना । कमजोर आदमी कभी सहन नहीं कर सकता । सहन वही कर सकता है, जो समर्थ होगा । महावीर ने प्रत्येक बात को सहा इसलिए कि वे शक्तिशाली थे । हम सहन करें, सहन करना सीखें, प्रत्येक घटना और संकट को सहन करने की क्षमता जाग जाएगी। एक मुनि के लिए बहुत कुछ सहन करने का विधान किया गया है । कष्टों को सहन करने का विधान किया गया है । इसका मतलब यही है-यदि तुम तैजस शक्ति को जगाना चाहते हो, कुंडलिनी को जगाना चाहते हो, तो कष्टों को सहन करना सीखो। भूख का कष्ट, प्यास का कष्ट - इन सबको सहन करते जाओगे, तो तुम्हारी तेजस शक्ति, कुण्डलिनी शक्ति अपने आप जाग जाएगी । तुम्हारा आकर्षण बढ़ता चला जाएगा । तपस्या की शक्ति से, कष्टों को सहन करने से अपने आप कुण्डलिनी जाग जाती है । कष्ट सहना मूर्खता नहीं है । हमारे आचार्यों ने कष्ट सहने का जो विधान किया, उसके पीछे रहस्य छिपा था Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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