Book Title: Manavta Muskaye
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 231
________________ ७९. नैतिक क्रांति की सही दिशा गिरता हुआ राष्ट्रीय चरित्र एक समय था, भारत का राष्ट्रीय चरित्र बहुत उंचा माना जाता था । विश्व मानव के लिए एक आदर्श था । तभी तो यहां के स्मृतिकारों ने कहा एतद्देशप्रसूतस्य, सकाशादग्रजन्मनः 1 स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्, पृथिव्यां सर्वमानवाः ॥ अर्थात् इस देश में जन्मे हुए अग्रजन्मा से पृथ्वी के सारे मनुष्य चरित्र की शिक्षा लें । पर आज उसकी स्थिति इससे सर्वथा प्रतिकूल है । यहां के नागरिक सत्यनिष्ठा, प्रामाणिकता, अहिंसा आदि सात्त्विक गुणों से परे होते जा रहे हैं । इसका प्रतिफल है - राष्ट्रीय चरित्र का पतन । क्या भारतीयों के लिए यह लज्जा का विषय नहीं है । कहां तो उनका वह उत्कृष्ट चरित्र, जिसे संसार के लोग अनुकरणीय मानते थे और कहां आज की चारित्रिक दृष्टि से गई-गुजरी हालत । क्या वे अन्तर्-अवलोकन करेंगे ? स्वार्थवृत्ति का दुष्परिणाम व्यक्ति स्वार्थवश कितना नीच और हीन हो जाता है, यह किसी से छिपा नही है । वह घृणित से घृणित कार्य करता भी नहीं हिचकिचाता । यह आज के मानव-मानस में परिव्याप्त स्वार्थमूलक पागलपन का संकेत है। यह समाज के हीन और निम्न चरित्र की सूचना है। जब तक मानव अपने मन से घिनौनी और जघन्य वृत्तियों को दूर नहीं करेगा, वह सुखी और स्वस्थ समाज का चित्र कल्पना में नहीं ला सकता । जीवंत धर्म यह कहना अतिरंजन नहीं होगा कि आज अनैतिकता का घोर प्रवाह बह रहा है । सत्य, नैतिकता और ईमानदारी पर आधारित मूल्य विघटित हो रहे हैं । तब हरेक वर्ग के व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि उसके जीवन में नैतिकता आए । अनिवार्य रूप में आए। हालांकि नैतिकता के नैतिक क्रांति की सही दिशा २१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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