Book Title: Manavta Muskaye
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 247
________________ उपाध्याय - धर्मसंघ की सारणा वारणा एवं शिक्षा-दीक्षा के लिए निर्धारित सात पदों में से एक पद । सूत्र की वाचना देना, शिक्षा की वृद्धि करना उपाध्याय का काम है । उपाध्याय की नियुक्ति आचार्य के द्वारा होती है । नमोक्कार मंत्र ( नमस्कार महामंत्र ) का चौथा पद इनके लिए प्रयुक्त है । ऊनोदरी (ऊनोदरिका ) - आहार, पानी, वस्त्र, पात्र एवं कषाय आदि की अल्पता करने को ऊनोदरी कहते हैं । नवकारसी, एकाशन आदि उपवास से छोटी जितनी भी तपस्या होती है, वह सब ऊनोदरी के अन्तर्गत है । काय - क्लेश - विभिन्न प्रकार के आसनों तथा कायोत्सर्ग के द्वारा शरीर को साधना कायक्लेश है । केवलज्ञान- - आत्मा द्वारा जगत् के समस्त मूर्त्त एवं अमूर्त्त तथा उनकी त्रैकालिक सभी पर्यायों का प्रत्यक्ष बोध केवलज्ञान है । इसमें इन्द्रियों और मन की सहायता की कोई अपेक्षा नहीं रहती । यह तेरहवें व चौदहवें गुणस्थान में तथा सिद्धों में होता है । देखें गुणस्थान । केवलदर्शन -आत्मा द्वारा जगत् के समस्त मूर्त्त व अमूर्त पदार्थों तथा उनकी सभी पर्यायों का सामान्य प्रत्यक्ष अवबोध केवलदर्शन है । इसमें इन्द्रियों व मन की सहायता की अपेक्षा नहीं होती । यह तेरहवें एवं चौदहवें गुणस्थान में तथा सिद्धों में होता है । देखें-गुणस्थान । -इन चार क्षयोपशम-ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तरायघात्य कर्मों के हलकेपन को क्षयोपशम कहते हैं । इसमें इन चारों कर्मों के विपाकोदय का अभाव होता है | क्षयोपशम में प्रदेशोदय होता है, विपाकोदय का अभाव होता है या मंद विपाकोदय होता है । जो कर्म उदयावलिका में प्रविष्ट हो चुके होते हैं, उनका क्षय होता है और जो उदय में नहीं आए हैं, उनका विपाकोदय नहीं होता, उपशम होता है । चूंकि यह क्षय उपशम के द्वारा उपलक्षित है, इसलिए क्षयोपशम कहलाता है । गणधर - तीर्थ-स्थापना के प्रारम्भ में होने वाले तीर्थकर के विद्वान् शिष्य, जो कि उनकी वाणी का संग्रहण गुम्फित करते हैं । कर उसे अंग-आगम के रूप में पारिभाषिक शब्द - कोष Jain Education International For Private & Personal Use Only २२९ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268