Book Title: Mananiya Lekho ka Sankalan Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 5
________________ एक मिनट, ब्रिटन की पार्लियामेंट को यह अधिकार कहाँ से मिला कि एक ऐसे देश में, जो उसके अधिकार क्षेत्र में किसी तरह नहीं है, व्यापार करने का परवाना दे सके ? यदि आपको शहर में कोई दुकान खोलनी हो तो संबद्ध वॉर्ड का अधिकारी ही आपको परवाना दे सकता है, उसी शहर के किसी अन्य वॉर्ड के अधिकारी का परवाना नहीं चल सकता । तो फिर यह तो सात समन्दर पार के देश की बात है। किंतु यह पुष्टि है उस स्वामित्व के अधिकार की, जिसे स्वयंभू रुप से पोप महोदय ने अपने आप में निहित कर लिया है ! जैसे हमारी संस्कृति का मंत्र है 'सब भूमि गोपाल की', वैसे पश्चिम की संस्कृति का मंत्र है -'सब भूमि.....' स्वंयभू स्वामित्व का एक और उदाहरण - २ दिसंबर १९६४ को तत्कालीन पोप जब पहली बार भारत आये तब बिना किसी पासपोर्ट के आये थे।अपने ही स्वामित्व के देश में जाने के लिए पासपोर्ट की भला क्या आवश्यकता?! खैर! 'चार्टर' लेकर आयी "ईस्ट इंडिया कंपनी" सत्रहवीं शताब्दी की शुरुआत में भारत आयी, बंगाल के नवाब के दरबार में चार्टर पेश किया, बिटन को मुट्ठीभर लोगों का गरीब देश बताया, भारत की समृद्धि और नवाब साहब के गुणगान किये, काँच के बने सामान का तोहफा दिया और - व्यापार के लिए कोठी बनाने की इजाजत मांगी। उदार व भोले नवाब, कपटी गोरों की भेद-नीति से अनजान, अंग्रेजों के प्रभाव में आ गये और उसके बाद का इतिहास तो सर्वविदित है। कुछ ही वर्षों में कोठियों के आसपास किले बन गये और स्वरक्षा के बहाने सेना की छोटी छोटी टुकड़ियाँ भी आ गई। बंगाल (कलकत्ता) के अलावा बम्बई व मद्रास में भी कोठियाँ बनी । - द्वितीय चरण में दुश्मन की छावनी में घुस जाने का काम पूरा हुआ । अब बारी थी दुश्मन के दारु-गोले के विनाश की । भारत की शक्ति थी उसकी हर क्षेत्र में सुद्रढ़ व्यवस्थाओं की - यही उसका दारु-गोला था । सबसे पहला लक्ष्य बना वर्ण व्यवस्था का विध्वंस । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र - इन चारों से, श्रम के विभाजन के सिद्धांत पर बनी पारस्परिक मेल-मिलाव वाली व्यवस्था के खंभों को एक एक करके तोड़ा गया। नयी शिक्षा नीति द्वारा गुरुकुल व्यवस्था को तोड़ कर ब्राह्मणों को दीन-हीन बनाया गया। धार्मिकता को अन्धविश्वास का रंग देकर प्रजा को शनैः शनैः धर्म के बारे में उदासीन बनाकर भी ब्राह्मणों की स्थिति बिगाडी गई और अंततः उन्हें सरकारी नौकरियों पर निभने को मजबूर किया गया। छोटे - छोटे राज्यों, राजाओं को आपस में लड़वा कर हारे हुए राजा का राज्य खालसा करके उसकी सेना का विसर्जन करवाया । जीते हुए राजा को भी संधि करके, अपना मित्र बनाकर, अपनी तोप व बन्दूक से सज्ज सेना की सहायता का आश्वासन देकर उसकी सेना की संख्या भी कम करवायी और इस तरह से क्षत्रियों को बेरोजगार व अंततः सरकारी नौकरियों का आश्रित बनाया। वैश्य वर्ग को स्थानिक धंधों को सहारा न देने की शर्त पर ब्रिटन में बने माल की एजेन्सी ऊँचे कमिशन पर देकर, "व्यापार याने व्यक्तिगत मुनाफा, सामाजिक उत्तरदायित्व नहीं"- एसी पट्टी पढ़ाकर इस देश के विशाल कारीगर और गृह उद्योग में लगे लोगों से दूर किया और यह विशाल वर्ग भी बेरोजगार हुआ। शूद्रों को अन्य तीनों वर्गों के प्रति भड़काया और धन, शिक्षा, वैदकीय उपचार - सहायता वगैरह का लालच देकर उनका धर्मातर किया और वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत समाज के अन्य वर्गों से उनका विच्छेद करवाया। (3) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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