Book Title: Mananiya Lekho ka Sankalan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ नाइट्रोजनयुदत कृतिम खाद के दुयभान ने अपनी भूमि, खाद्यानों और पीने के पानी तक की वार्षिक आवश्यकताओं को भी भयजनक रूप से प्रदूषित कर दिया है । मुखर्जी पी. नेजा और सुशील ए. के जैसे लोगों के अभ्यास के निष्कर्ष बताते हैं कि बड़े बांधों के विस्तार क्षेत्र में भूगर्भ जल में फ्लोरिन की मात्रा भयजनक रूप से बढ़ गई है। महेसाणा जिले के प्रभावित क्षेत्र के दो गांवो में किये गये शोध के आंकडे पेय जल में फ्लोरीन की मात्रा ३.२ पी.पी.एम. से ३.८ पी.पी.एम. बताते हैं। नागार्जुन सागर क्षेत्र में ये गावा ३ से १३ पी.पी.एम. व तुंगभद्रा बांध परिसर । में ५.४ से १२.८ पी.पी.एम. तक है। फर्टिलाइजरों का उपयोग यदि इसी गति से बढ़ता रहा तो सन् २००० तक भूगर्भ जल में पलोरिन की मात्रा ११.८५ से ५० पी.पी.एम. तक व सन् २०५० तक ८३ से ३५० पी.पी.एम. तक हो जायेगी । आंकडों के इन्द्रजाल में जिन्हे रस व ज्ञान न हो तो उनकी जानकारी के लिय प्रस्तुत है कि उचित मात्रा से अधिक प्रमाण में दूषित फ्लोरिन वाला जल पीने से जोडों में जकडन पड़ जाती है व तकलीफ इतनी बढ़ जाती है कि ऐसे प्रदूषित जल वाले गांव के लोग रात्रि को सोते समय बिस्तर के ऊपर छत में मोटा रस्सा लटका कर रखते हैं ताकि सहारा लेकर प्रातः उठ सकें .' । बैल ऐसा पानी पीये तो उन्हें खड़ा करने में सहायता करनी पड़ती है। बैल जैसे शक्तिशाली जीव की ऐसी अवस्था ." के सामने मनुष्य की तो विसात ही क्या है? . ..... व्यापार-उद्योग से संबंधित पत्र-पत्रिकाओं के संपादक नये-२ फर्टिलाइज़र प्रकल्पों के समाचार सउत्साह प्रस्तुत करते हैं । उस समय कधित कृपक नेता फर्टिलाइज़र की कीमतों में सबसीडी प्राप्त करने हेतु अपने वर्चस्व का उपयोग करते हैं । क्या वे सोचने के लिये कुछ देर रूक सकेंगे, कि वे प्रजा के हित-मित्र है अथवा हित-शत्रु ? . महाभारत की सिरियल को देखकर ज्ञान बोध की इस अद्भुत विरासत को मनोरंजन का साधन मात्र मान लेने वाली इस पीढी को तो ख्याल भी नहीं आयेगा कि महाभारत का 'शांतिपर्व' आदर्श राज्य संचालन की सचोट निरूपणा करता है । आधुनिक विज्ञान के अंधश्रद्धालुओं को उसमें वहम और पुराण के सिवाय कुछ दिखाई नहीं देता। पर वास्तव में यह महाकाव्य तो कितनी ही प्रतीकात्मक कथाओं द्वारा सुंदर सन्देश दें जाता है। ऐसी ही.एक लघुकथा में गाय के अंग-प्रत्यंगों में देवताओं के आवास की चर्चा है। देर से आई हुई लक्ष्मी भी किसी एक अंग में आवास की आज्ञा मायती है । गाय कहती है कि मेरे हर अंग में रहने का अधिकार किसी न किसी देवता ने प्राप्त कर लिया है, कहीं भी स्थान रिक्तं नहीं है । यदि रहना है तो मेरे मल-मूत्र में रह सकती हो । (शकृन्मूत्रे निवसेत) लक्ष्मी ने कथन को स्वीकार करलिया न उस समय से वह गोबर-मंत्र में निवास करती है। बड़े-बड़े निरर्थक विषयों पर सहस्रों टन कागज होमने के पश्चात् व रिसर्च के नाम पर प्रजा के गाढ़े पसीने की कमाई के अरबों रूपये व्यय करने के बाद भी कथित अर्थशास्त्री जो बात नहीं समझ पायें, उस महासत्य को महाभारत के कथाकार ने कथा के उपनय द्वारा किस तरह संहज में ही समझा दिया है। पशुओं के गोबर-मूत्र में लक्ष्मी का वास है, यह तथ्य यदि राजनीतिज्ञ व उनके सचिव जानते होते तो पशुओं का बृहत स्तर पर कत्ल करवाकर उनके चमड़े व माँस के निर्यात द्वारा कमाई विदेशी मुद्रा से फर्टिलाइज़र का आयात कर के और उसके उपयोग के लिये सबसीडी देने की, 'गाय दोहकर कुत्तों को दूध पिलाने की' मूर्खता नहीं करते । . फर्टिलाइज़र की कीमत में सबसीडी, ट्रेक्टर क्रय के लिये संस्ते ब्याज पर ऋण, अनाज के पोषणक्षम भाव, सिंचाई व बिजली दर में राहत, आदि विविध मांग द्वारा जगत का तात कृषक दिन उगते ही कटोरा लेकर सरकार से भीख मांगने लगता है । जग तात किसान को भिखमंग के रूप में परिवर्तित करने वाले किसान नेताओं के हृदय में किसान (50) Jain Education Interational For Personal Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56