Book Title: Mananiya Lekho ka Sankalan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 44
________________ करने में आनंद का अनुभव करने वाले, वेटिकन चर्च की सत्ता विश्वभर में स्थापित करने निकले इन गोरों के घातक पराक्रमों के कुछ प्रसंग नीचे दिये हैं। (१) स्पेनियार्ड रेड इन्डियन लोगों के हाथ इस तरह काटते थे कि कटा हुआ हाथ चमड़ी से लटकता रहे । वे लोग अपने हथियारों की धार की तीक्ष्णता जांचने के लिये पकड़े हुये रेड इन्डियन लोगों के पेट चीर देते थे और अपनी शारीरिक ताकात बताने के लिये एक ही वार में गर्दन उड़ाने की या शरीर के एक वार से दो टुकड़े करने की शर्त लगाते थे। रेड इन्डियनों के सरदार को जिन्दा जला दिया जाता था या तो उसे फांसी दी जाती थी। . (२) रेड इन्डियनों के समूह पर शिकारी कुत्ते छोड़े जाते, जो बच्चों को, स्त्रियों को, बूढ़ों वगैरह को फाड़ डालते थे। (३) दूध पीते बच्चों को उनकी माँ की छाती पर से दोनों पैर पकडकर खींच लेते थे और उनके सिर पत्थरों पर पटक कर उनको मार दिया जाता था। (४) वे लोग खड्डा खोडकर उसमें रेड इन्डियन बच्चों को स्त्रियों को, ढूंस ढूंस कर जीवित दबा देते थे और खड्डों में न समा सकने वालों को भालों से या कुत्तों द्वारा मरवा दिया जाता था। (५) ताजा ही प्रसूता स्त्रियों के पास से ये ख्रिस्ती अपना सामान उठवाते थे जिससे कि वे अपने नवजात बच्चों को उठा न सकें और एसे कितने ही नवजात बच्चे रास्तों की दोनों और मरे हुये पाये जाते थे। रोयें काँप उठे ऐसे क्रुरता भरे व्यवहारों के वर्णन से यह पुस्तक भरी पड़ी है। सोलहवीं सदी के अंत में वेस्ट इन्डिज, मेक्सिको और मध्य अमेरिका में ६ से ८ करोड़ लोग इस क्रुरता के शिकार होकर मर चुके थे। केवल पनामा के प्रदेश में ई. स. १५१४ से १५३० तक अर्थात् केवल १६ स्गलों में २० लाख लोंगों की कत्ल की गयी थी और इस कत्लेआम का अंत अभी तक नहीं आया था। एक और महत्वपूर्ण बात गौर करने लायक है कि भारत में घटित इक्का-दुक्का प्रसंगों के पीछे किसी धर्मगुरु की प्रेरणा या उकसाहट नहीं थी, परंतु जगत में अश्वेत / बिनख्रिस्ती प्रजा पर होते जुल्म, कत्ल, शोषण, अत्याचार वेटिकन के आदेश से, प्रेरणा से और प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहायता से होते रहे हैं, जिस के असंख्य प्रमाण हैं। ___ऐसे ही पराक्रम पोटुगीज गोरों ने पूर्वी देशों में किये हैं। क्या आज ऐसे कुकर्मों का अंत आ गया है ? नहीं, अश्वेत प्रजा का सफाया करने का कार्यक्रम आज भी चालू है। इन्टरनेट की वेबसाईट पूजः।गम्हेप्दन.म्दस्/ ५००.प्स्स्से प्राप्त यह जानकारी पढ़िये; "१९५०-१९५७ के बीच ब्राजिल की मूल प्रजा रबर की बढ़ती हुई खेती, कटते हुये जंगलों और बढ़ती हुये खानों के बीच १० लाख से घटकर २ लाख हो गई। १९६४ में अमेरिका, वर्ल्ड बैंक और आईअमएफ द्वारा प्रेरित राजकीय सत्ता पलट के बाद विदेशी पूंजी निवेश बढ़ा, लोगों की जमीनें छीनी गई, मूल प्रजा का नाश बढ़ता गया। मूल प्रजा पर बम विस्फोट हुये, उनके कत्लेआम इये, उनके बीच इंजेक्शनों तथा रोग के किटाणु वाली कंबलों से महामारी फैलाई गयी । १९६० तक एक मूल जाति के १९००० में से (सन् १९३० में) मात्र १२०० लोग बचे। ऐसा ही कितनी ही अन्य जातियों के साथ हुआ। ऐसी ही एक जाति 'तपाईयूनास" तो भेंट दी गई आरसेनिक (जहर) युक्त शक्कर के उपयोग से संपूर्णरूप से नष्ट हो गयी।" बहुराष्ट्रीय कंपनियों के इस देश में प्रवेश के सामने यदि प्रजा विरोध नहीं करेगी तो ब्राजिल की तरह इस देश में भी कत्ल चालु हो जायेंगे और जातियों की जातियों का सफाया कर देंगे। (42) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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