Book Title: Mananiya Lekho ka Sankalan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 42
________________ परंतु यदि आप वेटिकन राज्य के राज-प्रमुख के रुप में भारत आ.रहे हों, तो आपको धर्मगुरु का वेश त्याग कर भारत आना चाहिये, ताकि भारत के भोले लोग आपको धर्मगुरु मानकर आपके पंथ के अनुयायी बनने के प्रलोभन में न पडे। विश्व की अश्वेत प्रजा के मानव समूहों को ईसाई धर्मी बनने के लिये जो प्रलोभन आप दे रहे हो उसका गर्भित उद्देश्य उन मानवसमूहों को ईसा मसीह की मान्यतानुसार अध्यात्मिक विकास हासिल करवाना नहीं हैं परंतु बहुमत के आधार पर जगत में एक ही धर्म को स्थायी करने के प्रयासों में सफलता प्राप्त करना है। भारत की प्रजा और उनकी प्रतिनिधि संस्थाओं की ओर से यदि उपरोक्त स्थिति ली जायेगी तो ही पोप के भारत आगमन के अवसर पर विश्व का ध्यान सारी मानव जाति जिस भंयकर परिस्थिति में आ पहुँची है, उसकी तरफ खींचा जा सकेगा और पोप के आगमन के विरोध के सही कारणों पर प्रकाश पड़ेगा । इटली स्थित वेटिकन चर्च के प्रमुख पोप ज्हॉन पॉल यदि (द्वितीय) एक धर्मगुरु के रुप में भारत आ रहे हों तो उनके आगमन का विरोध करने के कारण निम्नलिखित हैं; आध्यात्मिक विकास की सीढी चड़ना चाहने वाले यूरोपीय प्रदेशों की प्रजा को उस प्रदेश के संतों तथा उन संतों की आज्ञा शिरोधार्य करने वाले धर्मगुरु सहायक हो सकते हैं। किंतु इन धर्मगुरुओं को अन्य प्रदेशों में जाकर वहाँ के मानवों के आध्यात्मिक विकास में सहायक बनने का प्रयास नहीं करना चाहिये क्योंकि एसे अन्य प्रदेशों में उन प्रदेशों के आध्यात्मिक विकास में सहायक धर्मपुरुष बिराजमान होते ही हैं। अन्य प्रदेशों में जाने से आध्यात्मिक जगत के अनुशासन का भंग होता है। ईसा मसीह और उसकी आज्ञा में रहने वाले संतों ने आध्यात्मिक जगत के इस अनुशासन का ई. स. १४९१ तक चुस्तता से पालन किया था। ___परंतु ई. स. १४९२ के पश्चात् वेटिकन चर्च के प्रमुख धर्मगुरु के रुप में आये पोप एलेक्झांडर (छठे) ने .. आध्यात्मिक जगत के इस अनुशासन का भंग करना शुरु किया। उन्होंने अन्य प्रदेशों में अपने शिष्य पादरियों को भेज कर वहाँ के लोगों में ईसू के नाम पर स्वंय का प्रभाव बढ़ाना शुरु किया और इसके लिये उन्होंने भंयकर हिंसा और अत्याचार का सहारा लिया । यह कार्य ईसू के आदेशों-सीख के विरुद्ध था। संतो- महंतों की बहुलता वाले भारत देश में भी वेटिकन चर्च के पादरी आने लगे। किसी एक विद्यालय के शिक्षक को किसी अन्य विद्यालय के विद्यार्थियों को पढ़ाने की ईच्छा हो तब भी एसा करने के लिये उसे दूसरे विद्यालय के प्राचार्य की अनुज्ञा लेनी पड़ती है। एसी अनुज्ञा प्राप्त किये बिना सीधे ही वे दूसरे विद्यालय के विद्यार्थियों को पढ़ाना नहीं शुरु कर सकते। वेटिकन के प्रमुख धर्मगुरु ने भारत के आध्यात्मिक क्षेत्र के अनुशासन को भी भंग किया। भारत के धर्मगुरुओं की अनुज्ञा प्राप्त किये बिना ही उन्होंने इस देश के लोगों को उपदेश देना शुरु कर दिया। इतना ही नहीं, कई तरह के प्रलोभन देकर लोगों को वेटिकन पंथ की तरफ आकर्षित किया। इतना ही नहीं, वेटिकन के प्रमुख धर्मगुरु ने अन्य देशों की ही तरह भारत में अपने शिष्य - पादरियों को भारत के लोगों के आध्यात्मिक विकास में सहायक होने की गरज से नहीं भेजा था, अपितु विश्व में बहमत के आधार पर एक मात्र वेटिकन पंथ का अस्तित्व टिका रह सके इसलिये वेटिकन संप्रदाय का बहुमत निर्माण करने के लिये अन्य देशों की तरह उन्हें भारत में भी भेजा। ___ भारत के धर्मगुरु वेटिकन की इस कुटिल चाल को अब जान चुके हैं और इसी लिये वेटिकन प्रमुख के धर्मगुरु के रुप में भारत आगमन का विरोध कर रहे हैं। - यदि वेटिकन चर्च के प्रमुख को भारत आना हो तो उन्हें भारत के धर्मगुरु वर्ग की अनुज्ञा लेनी चाहिये (जिस तरह औपचारिक यात्रा के लिये एक राज्य के राजनयिक दूसरे राज्य के राजनयिक की अनुज्ञा प्राप्त करते हैं)। इतना ही नहीं, उन्हें भारत के धर्मगुरु वर्ग को यह विश्वास दिलाना होगा कि वे इस देश के मानवों के Jain Education International (40) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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