Book Title: Mananiya Lekho ka Sankalan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 41
________________ विरोध वेटिकन का, न कि इसाई धर्म का ईसा मसीह का पंथ शुरु होने के पश्चात् सन् १४९१ तक ईसाई धर्म के संतों ने अपने धर्म के पालन व प्रचार करने के लिये विश्व में चली आती प्रणालिकाओं में किसी तरह की अड़चने पैदा नहीं की थी। आत्मा व जनकल्याण के हित की दृष्टि से ईसा मसीह द्वारा निरुपित दया मार्ग का ही उन्होंने अवलंबन लिया था और उसका प्रचार करने के लिये यूरोप में जगह-जगह पर प्रार्थना करने के स्थान - चर्च स्थापित किये थे। वेटिकन चर्च भी एसा ही एक चर्च था । परंतु ई. स. १४९२ के बाद उस चर्च के धर्मगुरु के रुप में नियुक्त हुए पोप ऐलेक्झेंडर (छठे ) ने उस धर्मस्थल को राजनैतिक अड्डे में बदल डाला। ईसाई धर्म के अन्य धर्म-स्थलों (चर्चों) के प्रमुख धर्मगुरुओं की मंडली से अपने आप को अलग करके, वेटिकन चर्च के उस धर्मगुरु ने समस्त विश्व को अपनी सत्ता के नीचे लाने की आसुरी लालसा से वेटिकन चर्च का राजकीय केन्द्र में रुपांतर किया। बाहर से उन्होंने धर्मगुरु होने का दिखावा चालू रखा, परंतु आंतरिक रुप से वे राजनैतिक नेता बन गये । तदुपरांत, तब तक वे सिर्फ वेटिकन चर्च प्रमुख थे, परंतु ई. स. १४९२ के बाद वे स्वंय को ईसाई धर्म के सभी चर्चों के प्रमुख के रुप में तथा ईसाई धर्म के सभी अनुयायीओं के प्रमुख के रुप में मानने लगे और उस मान्यता को पुष्ट करने के व्यवहार शुरु किये। अर्थात् सन् १४९२ के पश्चात ईसा मसीह के पंथ के स्थान पर वेटिकन पंथ शुरु हुआ । परंतु योरप की प्रजा 'एकाएक तो वेटिकन पंथ का स्वीकार नहीं करती, इसलिये उनको छलने के लिये ईसा का नाम लेना तो उन्होंने चालू ही रखा। ईसा के नाम पर उन्होंने यूरोप के लोगों को वेटिकन की ओर खींचना शुरु किया । पूरे विश्व को वेटिकन की सत्ता के नीचे लाने की दुष्ट लालसा पूरी करने के लिये उन्होंने स्पेन व पोर्तुगल के राजाओं का सहयोग मांगा और एसा सहयोग मिलने की लालच में उन्होंने आधा विश्व स्पेन के राजा के चरणों और आधा विश्व पोर्तुगल के राजा के चरणों में एक जाहिर 'बुल' के माध्यम से भेंट कर दिया। इसके बाद स्पेन राजा के प्रतिनिधि के रुप में कोलंबस ने पश्चिम के देशों में तथा पोर्तुगल के राजा के प्रतिनिधि के रुप में वास्को. डी गामा ने पूर्व के देशों में कैसा भंयकर नरसंहार किया यह तो इतिहास प्रसिद्ध है। यदि पोप ऐलेक्झांडर (छठे) सच्चे धर्मगुरु होते तो उन्होंने विश्व में एसा नरसंहार शुरु किया होता ? सच्चे धर्मगुरु तो विश्व में शांति फैलाने वाले होते हैं। परंतु १४९२ में वेटिकन के प्रमुख धर्मगुरु के रुप में स्थापित पोप धर्मगुरु न रहकर सत्ता पिपासू राजकीय नेता बन गये थे । अतः भारत आ रहे पोप से यह स्पष्टीकरण मांगना चाहिये कि - १) वे वेटिकन चर्च के प्रमुख धर्मगुरु के रूप में भारत आ रहे हैं ? या २) वेटिकन राज्य के राज- प्रमुख के रुप में भारत आ रहे हैं ? कह देना चाहिये कि जो उथलपुथल मचाई यदि वे वेटिकन चर्च के धर्मगुरु के रुप में भारत आ रहे हों तो हमें उन्हें स्पष्ट रुप ई. स. १४९२ के पश्चात् वेटिकन के राज-प्रमुखों ने धर्मगुरु के आवरण के नीचे विश्व में है उसके लिये उन पोप के उत्तराधिकारी के रुप में आपको समस्त विश्व की प्रजाओं की क्षमा मांगनी चाहिये और श्वेत/अश्वेत प्रजाओं ने जो असाधारण विनाश सहा है उसकी भरपाई करनी चाहिये। इतना ही नहीं, आपको एक जाहिर निवेदन द्वारा यह घोषणा भी करनी चाहिये कि आप वेटिकन के राज-प्रमुख न रह कर अब एक सच्चे धर्मगुरु बन गये हो और अब से वेटिकन के राजकीय स्वरुप को खत्म कर जगत में उल्कापात मचाना बंद कर दिया है। और इसके प्रमाण स्वरुप ई. सं. १४९३ के अन्यायी 'बुल' को तथा उसके अनुसंधान में बने सभी कानूनों/संधियों को निरस्त जाहिर करना चाहिये। आपकी इस घोषणा के बाद एक धर्मगुरु के रुप में भारत में आपका सत्कार करने में हमें आनंद आयेगा । Jain Education International (39) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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