Book Title: Mananiya Lekho ka Sankalan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 14
________________ न्याय - कानून - राज्यसत्ता न्याय, कानून और राज्यसत्ता इन तीनों परिबलों का आंतरिक बंध, एक दूसरे की अपेक्षा से अग्रता क्रम और प्रजा जीवन पर इन तीनों का प्रभुत्व; इन सबका गंभीरता से विचार करना जरुरी है। ___इस देश के प्राचीन संतो और महापुरुषों ने जगत को प्रदान की हुई व्यवस्थाओं के अन्तर्गत न्याय को धर्म का पर्याय मानकर सर्वोच्च स्थान पर बिराजित किया था। आज न्याय और कानून एक-दूसरे के पर्याय माने जा . रहे हैं, जो एक भ्रम है। ये दोनों भिन्न-भिन्न हैं। कानून के बिना भी न्याय हो सकता है, लेकिन न्याय के बिना कानून नहीं हो सकता। ___ कानून का Concept आया कहाँ से? उत्क्रांतिवाद को मानने वाले इतिहासकारों की दृष्टि में इसका इतिहास कहना हो, तो इस तरह से कहना चाहिए कि - मानव इस सृष्टि में अकेला था, कहीं भी रहता था, कहीं भी खाता था, कहीं भी भटकता था। लेकिन समय के साथ-साथ उसने समुदाय में रहना सीख लिया। इस प्रकार के छोटे-छोटे अनेक समूहों की रचना हुई, इससे पारस्परिक व्यवहार एवं वर्तन के नियम बने। ये नियम नैतिक थे, इसलिये इन्हें नैतिक कानून कहा जा सकता है। तत्पश्चात लोगों को लगा कि उनकी संख्या और व्यवहार इतने व्यापक हो गए हैं कि कानून का अमल कराने के लिए सत्ता की जरुरत है, इसलिए उन्होंने सत्ता की स्थापना की। सत्ता को कानून का अमल भी सोंपा गया एवं नये कानून बनाने का अधिकार भी दिया गया। इस प्रकार कानून और सत्ता परस्परावलंबी हुए। फिर भी कानून बनाने की सत्ता मूलरुप से कहाँ से आई यह प्रश्न आज भी अनुत्तर ही है। आधुनिक राज्यव्यवस्था ने कानूनों का जंगल खड़ा किया। गणतंत्र राज्यप्रणाली ने उन कानूनों को बनाने की विचित्र व्यवस्था खड़ी की। बहुमतवाद- और जो भ्रष्टाचार से भी बनाया जा सके ऐसे बहुमतवाद - के हाथ में कानून बनाने की सत्ता आयी और उन कानूनों को uphold करना न्यायपालिका का कर्तव्य माना गया। इन सारी व्यवस्थाओं में न्याय का स्थान तो पाताल में चला गया। न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठनेवाला व्यक्ति सज्जन हो, निष्पक्षपाती हो, विवेकी हो, धर्म की सर्वोपरिता स्वीकारता हो, हेतु और अनुबन्ध का सन्तुलन बनाए रखने की दृष्टिवाला हो, तो किसी भी कानून (आज के Codified laws) के बिना भी न्याय दे सकता है। दूसरी ओर कितने है codified laws हों, फिर भी उसमें न्याय का तत्त्व न हो तो न्याय नहीं हो सकता। न्याय और कानून यह दोनों भिन्न विषय हैं। न्याय, कानून और राज्यसत्ता को एक त्रिकोण के रुप में कल्पित करें तो तीन विकल्प संभवित हैं : (अ) त्रिकोण के शीर्ष स्थान पर न्याय हो और त्रिकोण की आधार रेखा के दोनों ओर कानून तथा राज्यसत्ता हों। (ब) त्रिकोण के शीर्ष स्थान पर कानून हो और त्रिकोण की आधार रेखा के दोनों और न्याय एवं राज्यसत्ता हों। (क) त्रिकोण के शीर्ष स्थान पर राज्यसत्ता हो ओर त्रिकोण की आधार रेखा के दोनों ओर न्याय तथा कानून हों। सही व्यवस्था पहले विकल्प के अनुसार होनी चाहिए। न्याय सर्वोपरि होना चाहिए, कानून और राज्य व्यवस्था उनके सहायक होने चाहिए, परन्तु वर्तमान न्यायतंत्र में कानून सर्वोच्च स्थान पर है। कानून मतलब (12) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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