Book Title: Mananiya Lekho ka Sankalan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 23
________________ पास माँग करा कर, स्वयं खड़े किए हुए वर्ग को उपरी दिखावा कर कम महत्व देते गये। परिणाम स्वरुप मूलभूत वर्ग ज्यादा महत्व वाला माना गया। इस तरह दोनों वर्गों को स्वराज्य की भेंट दे कर अंग्रेज यहाँ से विदा हुए। पर वास्तविक रुप से देखा जाए तो मात्र यहां से दूर जा बैठे, और उपनिवेषवादी स्वराज्य की तमाम योजना पर 'स्वराज्य' का लेबल लगा कर हमारे हाथ में तंत्र की कमान सौंप दी। हमने यह समझा कि हमने दिये हुए बलिदानों और भोग के फलस्वरुप, हमारी मेहनत से हमने स्वराज्य प्राप्त किया। नये वर्ग को तो जो भी मिला वह फायदे में होने से वह भी खुश हुआ, और दोनों की मान्यता कायम रख कर, अंग्रेजों ने स्वयं निश्चित किये हुए मार्ग पर दोनों वर्गों को चढा कर उपनिवेषवादी स्वराज्य को मजबूत करने के उपाय हमारे ही हाथों करवा लेने का तख्ता सजा लिया। हम खुश हुए, कारण कि हमे स्वराज्य मिला। नये हकदार भी इसी मान्यता के आधार पर खुश हुए और अंग्रेज भी खुश हुए। उनकी मंशा हिंदुस्तान को उपनिवेषवादी अर्थात गोरी प्रजा के रहने की सुविधा वाला देश बनाने की थी, वह वास्तव में १५-८१९४७ को पूरी हुई। ___ इस तरीके से जो महत्ता भारत की 'प्रजा' की थी, वह भुला कर भारत 'देश' की महत्ता बढ़ा दी गई। अर्थात भारत जो आध्यात्मिकवाद के धरातल पर खड़ा था, वह अब भौतिकवाद में विश्वास करने वाला हो गया। हिंद देश की भूमि, उसके विपुल साधन, कुदरती खजानों इत्यादि की महत्ता खूब गाकर हिंद की प्रजा के महान सिद्धांतों हिंद की प्रजा की भव्यता, उदारता इत्यादि तमाम भुला दिया गया। इस तरीके से हिंद की प्रजा के महत्त्व की बली चढाकर हिंद की भूमि और उसके विपुल साधनों को ऊंचाई पर चढ़ा कर, उनमें और भी हो सके उतना सुधार कर खुद के ही उपयोग में उसका लाभ ले सकें, इस तरीके का 'स्वराय' ब्रिटिशों मे हमको दिया है, और हमने आंतरिक प्रशासन की स्वतंत्रता के मोहजाल में चकाचौंध होकर, जो स्वराज्य स्वीकार किया है, वह उपनिवेषवादी स्वराज्य ही आज का स्वराज्य है। इस तरह से भारत को उपनिवेषवादी स्वराज्य की दिशा में मोड़ने के लिए अंग्रेजों ने ३५० वर्ष यहां 'बिताये। प्रजा के वास्तविक स्वराज्य के मूलभूत पांच तत्त्वों में से प्रत्येक तत्त्व को एक के बाद एक ऊंचाई पर चढ़ा कर वापस धीरे धीरे नीचे पटक कर लगभग खत्म कर दिया। वे पांच तत्व थे:-१) धर्मगुरु, २) राजा, ३) महाजन, ४) ज्ञातियां तथा ५) धंधादारी जातियाँ। आज हम देख सकते हैं कि प्रजा के इन सभी मूलभूत तत्त्वों की क्या दशा है ? धर्मगुरुओं को एक किनारे कर, उनको मात्र बोध देनेवालें भिक्षुकों की स्थिति के मानवी मान कर धर्म से संबंधित कायदे कानूनों में से ऐसी यक्ति से हटा दिया है कि आज प्रजा और सरकार के बीच के कायदे कानूनों में इस वर्ग की हस्ती ही नहीं है। राजा भी अब अस्तित्व में नहीं है। महाजन नाम-मात्र .. को रह गये हैं। उनकी अथाग सेवा और प्रजा की सेवा के फलस्वरुप उत्पन्न होनेवाला पूज्यभाव तो आज कहीं दिखता ही नहीं है। "ज्ञातियाँ एक प्रकार का बंधन है और वे देश को नुकसान करनेवाली हैं, अत: ज्ञातियाँ खत्म कर देनी चाहिए" ऐसा मानने वाले एक वर्ग ने ज्ञातियों को दूर कर काँग्रेस- प्रांतिक समिति इत्यादि के बंधन खड़े • कर पुराने ज्ञातिबंधनों को तोड़ दिया है। आज जबकि काँग्रेस बहुमति के सिद्धांत पर रची गई है और मात्र अपनी बहुमति के बल पर मन चाहे जैसा कर, जिस प्रकार की अंधी दौड़ से आगे बढ़ रही है, वह ज्ञातियों से भी ज्यादा खतरनाक साबित हुआ है। ___धंधादारी जातियाँ! धंधों या व्यवसायों के आधार पर बनाई हुयी जातियों के बदले अंग्रेजी ढंग से रचित एसोसिएशनों को तैयार कर, अंग्रेजी रीत-रसम के कायदे स्वीकार कर, हमारे तमाम व्यापार, पहले की कारीगरी के धंधे, रोजगार वगैरह पर परदेशीओं का वर्चस्व स्थापित कर दिया है। इस तरीके ने हमारी जन-जन (21) For Personal & Private Use Only Jain Education Interational www.jainelibrary.org

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