Book Title: Mallinath no Ras
Author(s): Diptipragnashreeji
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 2
________________ ११२ अनुसन्धान- ५० आ रचना विषे कांई पण लखवुं ते मारा माटे गजा बहारनुं छे. छतां एटलुं जणावीश के कर्ता कवि पोते जे प्रकारे बोलता - लखता हशे तेवीज भाषा तेमणे आमां उपयोगमां लीधी छे. जेमके ओहालास (उल्लास), उशभ (अशुभ) इत्यादि. भाषाविदो माटे आ बाबत रसप्रद अने अभ्यासनो विषय बने तेम छे. कविनी आवी भाषाना कारणे घणा शब्दो समजाता नथी, ए पण जणाववुं जोईए. आवां अमुक स्थानोए (?) एम चिह्न मूक्युं छे. " कविए क्यांक क्यांक मूकेलां सुभाषितो पण मजानां छे. मूळ संस्कृतनां सुभाषितोने सहजभावे भाषामां अवतारवानुं काम मजानुं थयुं छे. जेमके - क. ८३ क्रमांकमां श्लोक ( शलोक) जुओ : "कामारथी तस कीतो लया...' 'कामार्थिनां कुतो लज्जा ?' ए पद्म तरत ज याद आवी जशे. ए ज प्रमाणे क. १३२-३३ना दूहा अने क. १३४ मी गाथा पण वेधक सुभाषितो लागे छे. क. १६३ थी १७२ क्रमांकना दोहरा पण एवांज सरस सुभाषितो छे, जे 'भोज' राजाना नामोल्लेख साथे होई भोजप्रबन्धमांथी अवतारेल छे तेम तुरत जणाई आवे छे. क. १९१ मां भैरव, कल्याण, नट रागनो उल्लेख कविना संगीतज्ञाननी तथा प्रेमनी शाख पूरे छे. इतिहासनी नजरथी जोवामां आवे तो, तपागच्छनी बे शाखा थई, ते वखते आणसूर शाखाना मूळ आचार्य श्री विजयानन्दसूरिना राज्यमां कविए आ रास बनाव्यो छे (क. २७६). त्रंबावतीखम्भातनुं वर्णन करतां त्यांना विशिष्ट गृहस्थ श्रावको अने तेमनां सुकृतोनुं कवि सुन्दर वर्णन कर्तुं छे. पारेख वजीओ - राजीओ (बे भाई हता), जेणे साडा त्रण लाख रूपियानुं सुकृत करेलुं (क. २८०); ओसवालवंशीय सोनी तेजपाल, जेणे शत्रुंजय अने गिरनारना तीर्थोद्धार कराव्या (क. २८१), अने बे लाख ल्याहरी (चलण) खरची हती; संघवी सोमकरण-उदयकरण, ओसवाल राजा श्रीमल, ठक्कुर जयराज जसवीर, ठक्कुर कीका - वाघा इत्यादिनां नामो नोंधीने कविए तत्कालीन खम्भातनी ऐतिहासिक स्थितिनुं चित्र आप्युं छे. खम्भातमां जीवदयानी संस्था ते काले पण हती ते पण (क. २८४-८५) अहीं नों धायुं छे. छेवटे वीसा पोरवाड वंशना महीराज संघवीना पुत्र संघवी सांगणना

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