Book Title: Mallinath no Ras
Author(s): Diptipragnashreeji
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 11
________________ डिसेम्बर-२००९ १२१ पणि मली स्त्री आगलिं अंतेवर हारइ । ते नारि तुझ धरि नही तो स्यु छइ त्याहरइ ॥१००।(१०१)। सूणता ईछ्या उंपनी नृप को वीचार । एक अद्भुत नारी भली मुझ कसी हजार ॥१०१।(१०२)॥ कुडलीओ ॥ राय कहइ पटणि रहीइ कइ वनमांहि वास । एक मित्र राजा भलो कइ जोगीनो दास । कइ जोगीनो दास एक वरि सूदर नारी । कइ दरि लीजइ जाय छत्र एक कइ व्यापारी । सोईइ सोवन-ढोलीइ कइ भुडी भोमिज ग्रहीइ । मंदीर केअ मसाण, राय कहइ पटणि रहिइ ॥२।(३) ॥ ॥ चोपई ॥ वसीइ म्होटा नगर मझारि धरणि तोह अनोपम नारि । अस्यु चीतवी राजा त्याहिं दूत पाठव्यो मीथलामांहि ॥३।(४)।। छइ दुत मल्या तेणइ ठाय समकालिं वीनवीओ राय । पुत्री मागइ जुजूआ राय कुंभरायनइं चढ्यो कषाय ॥४(५)। वर कन्यानि मागइ जेह अधम पूरष जगि कहीइ तेह । काढी मोकल्या सघले दूत छइ रायनि वलगां भुत ॥५॥(६)॥ हडसेल्या हाक्या दूतडा वल्यां सोय भइरव भुतडा । पोताना राजानि मलइ करइ वात घणु कलकलइ ॥६(७)।। नरपति नारि कथा मुकीइ कन्यानही पणि गाल्यो दीइ । छइ दूतनिं कऱ्या फजेत नवि साखइ नर जेह सचेत ॥७(८)॥ सुणि वचन नृप खीया त्याहि दूत मोकल्या माहोमाहि । आपणि जावू मिथला भणी कुभ तणइ करस्यु रेवणी ॥८(९)। कटीक सज छइ त्याहा करइ मीथला उंपरि ते संचरइ । आवी वीट्यों नगरी-कोट कुंभराय परि देता डोट ॥९।(१०)॥ कुंभराय करइ संग्रांम छइ राय दल झूझइ ताम । वढता कुभ न चांलइ जसिं भंडी पोलि गढम्हा रह्यो तसिं ॥१०(११)॥

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