Book Title: Mallinath no Ras
Author(s): Diptipragnashreeji
Publisher: ZZ_Anusandhan
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१२४
अनुसन्धान-५०
कशा भोग मानव तणा भोग भला सुरमाहिं । तीहइ भोग तुम भोगव्या तोहुं भुख्यां तुम आहि ॥३७(३८)॥
॥ चोपई ॥ आणइ ठामि तुम ईछो भोग जो तुम पाम्या सुर संयोग । बत्रीस सागर न्युन्य काई आय एक हाथ सुदर यहो काय ॥३८॥(३९)। काम कुचेष्टा ज्याहाकणि नही सुखभरि काल गमाडइ तही । साह्यबि सेवक नहि तेणइ ठारि माखण सरखो फरस वीचारि ॥३९।(४०)। पाचे विमानि उपजइ जेह सप्तलवी सुर केता तेह । ज्ञाति लवनु अदीकुं आय तो ते देवता मुगतिं जाय ॥४०।(४१)। पंचम विमानि उपजइ जेह एक अवतारी होइ तेह । च्यार विमानमाहिं अवतरइ भव संख्याता ते पणि करइ ॥४१।(४२)। पाच विमान नि नव ग्रीवेय्य वचनवाद तीहा नही रेख । लेशा एक सकल छइ सदा ते मृतलोक्य न आवइ कदा ॥४२।(४३)। अनुतर पाच विमानिं जोय चोसठि मणनां मोती होय । बीजइ ठामि कुभप्रमाण नादि लीणा रहइ सुर जाण ॥४३।(४४)।।
॥ ढाल ॥
॥ तो चढीओ घन मान गजे ॥ सुरना सुख छइ अती घणा ए मनमां च्युत्यु थाय तो । रयण विमान छइ स्यास्वता ए काल सुखि त्याहा जाय तो ॥४४।(४५)। रूप सकोमल तेहनां ए अतिहिं सूगंधी देह तो । केस मुछ डाढी नही ए तेजपूज सुर तेह तो ॥४५॥(४६)॥ रुधीर चर्ब नस नख नही ए रोम-रहीत तन जोय तो । परसेवो अंगि नही ए रोगरहीत तन होय तो ॥४६(४७)। जरा न आवइ देवनि ए सूखीआ लीलवीलास तो । मधुर वचन मुख्य बोलता ए सखरी सास उसास तो ॥४७(४८)।। बत्रीस सहिस वरस ज गई ए होइ आहार ईछ्याय तो । सोल मास गया पछी ए सास उसास ज थाय तो ॥४८(४९)। त्रणि ज्ञानना तुम धणी ए पूरविं सुर अवतार तो ।

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