Book Title: Mallinath no Ras
Author(s): Diptipragnashreeji
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 18
________________ १२८ कनक-कलसला मसतगि धरइ ज नारी जन बोलता वाणीअं अत्यहिं सारी ॥ म० ||८४|| (८५) डंडा रस पात्र खेला ज खेलइ बहु पूरष साथि मीथला मेहेलइ । सिहिश्रावनमांहिं स्वामी ज आवइ दीख्या कारणि ऊतरी सज थावइ ॥ म०||८५|| (८६) अशेख विरख तली आवियो मलीनाथो नीज मस्तग ऊँपरिं धरत हाथो । पंचमुष्ट करतों जिन वन मायों । मागशर शुदि एकादसी अत्याो ||०||८६॥(८७) अठमतप पचकता मलीनाथो पूठई त्रणिसहिं पूरषनो होय साथो । प्रथम वइ चारीत्र त्यांह लीधुं खीरिं पारणु मीथलांमाहि कीधुं ॥८७॥ (८८) अश्वसेन घरि पारणुं सोय थाइ पंचदीवस्यु दुदभी देव वाहइ । गुणग्राम दातारना देव गाइ वीश्वसेन त्रीजइ भवि मोक्ष जाइ ॥ दाता मोक्ष होई |आचली ॥८८॥ (८९) अनुसन्धान-५० मोटो दान-महीमाय ते कह्यो न जाइ कर्ण कृष्णनिं वीक्रमो भोजराइ । हरीचंद बलि जाचतां दरीद्र जाइ जस जेहनो आज अदीको गवाइ ॥ दाता०॥८९॥(९०) दानिं दरीद्रपणुअ ते अवश जाइ हिहीषता हाथीआ घरि बंधाइ । छइ खंडनो राय ते आप थाइ छत्ररत्न सिर उंपरिं सही धराई || दा० ॥९०॥(९१) नर पायका कोडि आगलउं जाइ गुण जाच्यका पंडीता सोय गाइ ।

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