Book Title: Mallinath no Ras
Author(s): Diptipragnashreeji
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 27
________________ डिसेम्बर २००९ संवत बोण सीधी ट चंद' पोस मासि हुओ आनंद । ऊजल परवी तेरसि रविवार रास तणो कीधो वीस्तार ॥९०॥(९२) प्रागवंसि वीसो वीख्यात मिहइराज संघवी मुख्य कइहइ वात । संघवी सागण सुत तस होय द्वादश वरतनो धोरी सोय ॥ ९१ ॥ (९३) तास पूत्र पूरइ मन आस कवीता श्रावक रीषभदास । गायो मलिनाथनो रास सकल संघनी पोहोती आस ॥ ९२ ॥ (९४) कडी क्र. ४ ४ ॥ ढाल ॥ दीठो रे वामा को नंदन दीठो । राग mococ आसो रे मूझ आज फलि मन आसो भ्रह्मसुता चरणे नमि कीधो, मल्लीनाथनो रासो रे । मूझ पोहोती मननी आसो ॥ आचली ॥ २९३ ॥ (२९५) मेर मही सायर ससी ज्यांहिं जब लग सूर प्रकासो । जव लग सीधशला सुरनां घर तव लग रिहइज्यो रासो रे || मूझ० || ९४ ॥ (९६) सूणी साभली जि नर चेत्या छुटी भवनो पासो । रीषभ कहइ ए रास सूणंता अनंत सुखम्हा वासो रे ॥९५॥(९७) मुझ पोहोती मननी आसो ॥ ६ - शब्द धन्यासी ॥ माहावदेमांहि वीज वसन इती श्री मल्लीनाथ रास संपूर्ण ॥ शुभ भवतू ॥ कल्याणमस्तुं । छः ॥ गाथा १३७ २९५।।(२९७)।। कठिन शब्दार्थ अर्थ महाविदेह (क्षेत्र)मां विजय (क्षेत्र विशेष) व्यसन

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