Book Title: Mallinath no Ras
Author(s): Diptipragnashreeji
Publisher: ZZ_Anusandhan
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अनुसन्धान-५०
फलों मनोरथ सघलों आज श्रीगुरुं नामि सीधा काज । विजयानंदसुरिस्वर नाम जेहना जग बोलइ गुणग्राम ॥७६॥(७८) तेह तणइ चरणे अनुसरि मलीनाथ गुण वेली करी । सकल कवीनिं नामी सीस मिं गायो जिनवर ज्यगदीस ॥७७॥(७९) ज्ञाताधर्मकथांग सुसार छठइ अंगिं एह वीचार । समध सोय त्याहाथी मई ग्रही रास रच्यो हईअडइ गहइगही ॥७८॥(८०) त्राबावतीम्हा गायो रास ज्याहा छइ अढार वरणनो वास । ज्ञाति चोरासी वाणिग वसइ दान पूण्य करता ओहोलसइ ॥७९॥(८१) पारिख वजीओ नि राजीओ जस महीमा जगम्हा गाजीओ । अऊठलाख रूपक पूण्य ठामि अमारि पलावी गामोगामि ॥८०॥(८२) ओसवंसि सोनी तेजपाल शेत्रुज गीर ऊधार वीसाल । ल्याहारी दोय लाख खरचेह त्राबावतीनो वासी तेह ॥८१॥(८३) सोमकरण संघवी ऊदइकरण अध लख्य रूपक ते पुण्यकरण । उसवंसि राजा श्रीमल अधलख्य रूपकि खरचइ भल ॥८२॥(८४) ठकर जइराज अनि जसवीर अधलख्य रूपक खरचइ धीर । ठकर कीका वाधा जेह अधलख्य रूपक खरचइ तेह ॥८३॥(८५) अस्युं नगर त्रंबावती सार रत्नहेम रूपक दातार । भोगी पूरषनि कृरणावंत वाणिग छोडइ बाध्यां जंत ॥८४॥(८६) पसु पूरषनी पंडा हरइ मादा नरनिं साजा करइ । अजा महीषनी करइ संभाल श्रावक जीवदया प्रतिपाल ॥८५॥(८७) पंचासी जिनना प्रासाद धज तोरण तीहा घंटानाद । बिहइतालीस याहा पोषधशाल करइ वखाण मूनी वाचाल ॥८६॥(८८) पोषध पडीकमणु पुजा य पूण्य करंतां दाढा जाय । प्रभावना वाख्यानि ज्याहि शामीवाछिल होइ प्राहि ॥८७॥(८९) ऊपाशरो देहेरं नि हाट अत्यंत दूरि नही ते वाट । ठंडिल गोचरि सोहोली आहि मुनि रहिवा हीडइ अही प्राहि ॥८८॥(९०) अस्युं नगर त्रंबावती खास मि जोड्यो मलिनाथनो रास । कोण संवछर मास दीन वार गुढपणइं कीजइं वीस्तार ॥८९।।(९१)

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