Book Title: Mallinath no Ras
Author(s): Diptipragnashreeji
Publisher: ZZ_Anusandhan
View full book text
________________
डिसेम्बर २००९
एक वखाणइ नारि सरूप आहा सुख नही परभवि दुखकुप । रगत मंश हाडना खंड सोय वखाणी अमृतकंड ||६२|| (६४) एक तो वेसर जोडइ आहिं अही कणि दुखीओ होइ प्रांहिं । परभवि दुख पामि नीरधार सार पूरष निं करइ असार ||६३ || (६५) एक मुरिख जोडइ गुण भाड आभवि परभवि तस मुखि खाड । ढाक्या बोल परगट उंचरइ थाइ भाड चोगतिम्हां फरइ ||६४ || (६६) कुगुरु कुदेव तणा गुण गाय अर्थ सीध कसी नवि थाय ।
सुगुरु सुदेवनी नंद्या करइ धरम उंथापी चोगति फरइ ॥६५॥ (६७) अशा ककव्य हुआ जगि बहुं कवतां पार न पाम्या कहुं । सुगुरु सुदेव तणा गुण गाय आ भवि परभवि सुखीओ थाय ॥६६॥ (६८) स्तुति करतां लहइ लागी जोय इंद्र तणी पदवी तो होय ।
वाधी लहइ तो गणधर थाय तीवर रागि हुआ जिनराय ॥६७॥ (६९) लहि लागानुं थानक एह जिनवरना गुण स्तविइ जेह ।
रावण परि तीर्थंकर थाय करम खपी निं मुगतिं जाय ॥६८॥ ( ७० ) एवा जिन स्तुतिना गुण लही मल्लीनाथ मिं स्तवीं सही । पूरव पात्तिक चाल्यां वही सकल सीध नीज मंदिर थई ||६९|| (७१) पूरविं तु न दीठो क्याहि तो जीउं फरतो चोगतिमाहि ।
कहीइं न वंद्या ताहारा पाय तो सीधगति मुझ क्याहाथी थाय ॥७०॥ (७२) ताहरा गुण नवि बोल्यो कदा तो क्यम जाइ भवआपदा ।
कहीइं न कीधो ताहारो धर्म तो क्यम त्रुटइ आठइ करम ॥७१॥(७३) स्युपनिं तुं दीठो जो हंत तो मुझ भवनो आवत अंत । ताहारो धरम अनमोध्यो हंत तो मुझ सुखीओ थाअत जंत ॥७२॥ (७४) अनंतकाल मुझ पुरविं गयो ताहारा नाम विनां अही रह्यो ।
हवइ मुझ सीधां सघलां काम पाम्यो मल्ली जिनेस्वर नाम || ७३ ॥(७५) स्तवतां सुखशाता मुझ अंगि जईन धर्म साधु मनरंगि ।
जस कीरति जगम्हा बोलाय मलीनाथ त्हारो महीमाय ||७४ || (७६)
तु ठाकुर हुं ताहारो दास मिं कीधो तुझ गुणनो रास ।
गुणि भण[इ] सुणइ साभलइ तेनिं बारि स्युभ - सुरतरू फलइ ॥७५॥ (७७)
१३५

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31