Book Title: Majernamu Author(s): Gyansundar Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala View full book textPage 5
________________ मारा विचारो अधमोद्धारक श्री सीमंधर स्वामीने आ वीनतीरुपे कागळ~~ . हुंडी-पेठ-परपेठ अने मेजरनामुं बनावीने में मारा हृदयनां विचारो रजु कर्या. अने तेमां (२०३) ठेकाणे आगम पाठनां प्रमाण दाखल करी मारी दलीलो मजबूत करी मे शासनसेवा बजावी छे, सत्य अने असत्य ए बे मेळशेळ न थई जाय, ए खास ख्यालमा राखी आ प्रवृत्ति करी छे. आ एक बाबत भूलवा जेवी नथी के, भस्मग्रहनी मीठी असरथी शासनमां बे हजार वर्ष पर्यंत घणी हानि थई छे. अने ते हानिमाथी घणा भाग्यशाली जैनाचार्यों बची गया छे. छतां पण केटलाक एवा पण शिथिलाचारी चैत्यवासी भाचार्यो थया छे के जे शासनमां कांटा खीला समान थया छे. जेनी प्रवृत्तिओ जैन समाजने घणी खटके छे ते दूर करता पण पार आवतो नथी. पेली काळी बीलाडीनी वार्ता अने " हारितंताम्र भाजनम् " जेम घणी बीलाडीओ पेढी छे अने सत्य शोध मुशकील थयुं छे. आ प्रकरणमा मात्र मुखनी वातो थी पण सिद्धातनां पाठथी सत्य समजाववा कोशीश करी छे. आराधक थोडा अने विराधक जीवो घणा होय छे तेथी घणानी देखादेखीमां बिचारा भोळा माद्रिक प्राणी घणी वखत फसाई जाय छे. अने खोळने गोळ सरखा मानी पाछळथी जरुर पस्ताय छे. अने केटलाक पासस्थाओ एम समझावे छे के आ ढुंढियामांथी अवेला छे तेने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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