Book Title: Majernamu
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala

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Page 3
________________ शके एवी प्रवृत्तिओ अने. परंपरा उभी करी छे; आ बधी भांजगड सर्वाशे सुधारवी कठीन थई पडी छे, बणा भव्य जीवो आवा गोटाळाथी कंटाळी गया छे अने हवे शुं करवू केम तरी पार थशें एवा धर्म संकटमां मुझाया करे छे. मारी पण एवी स्थिति थई छे. अने तेथीज आ विनीत पक्ष स्वीकारी विनती रुपे मारा विचारो सीमं.. धर प्रभुनी सन्मुख उभा रही हाथ जोडी अत्यंत नम्रमावे जाहेर रीते जणावी दीधा छे. सेमां कोईनी साथे अभाव अप्रीतिनुं कारण नथी. मे भला पुरुषो हशे ते सर्वे मारे माननीय छे अने जे भलाईथी वेगळा हशे ते सर्वनी साथे समभावे उपेक्षा राखं छु. आ ग्रंथ साद्यंत वांची विचारी अपक्षपात दृष्टिथी दरेक भला पुरुषोए निर्णय करी लेवा प्रार्थना के. . . -लेखक. पुष्पांजली. . . हे प्रभो दीनोद्धारक ! मारी शी दशा थई. त्हारी पासे जन्म्यो नहि. तेम चोथा आरामां त्हारो मार्ग मल्यो नहि. अरेरे ! हे स्वामिनाथ ! आवा पांचमा आरामां भयंकर कलिकाळा मारो जन्म तेमां कुगुरु समागम त्यांथी भागी ल्हारा शुद्ध शासनमा दाखल थयो. अने आगमशैली तपासी जोई तो जुदी जदी समाचारी अने गच्छागच्छ मतामत जोई, हे स्वामीनाथ ! क्या त्हारो लोकोत्तर मार्ग अने क्या आ लौकिक प्रवाह-गाडरीओ प्रवाह ! हे करुणासागर ! क्या त्हारी वीतराग वाणी अने क्यां आ पर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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